Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
[थीपाल चरित्र चतुर्थं परिच्छेद के धर्म प्रभाव से चले । अब मार्ग में पुन: विपदा के बादल पा घुमडे । सुसज्जित बिचरते जहाजों
को बर्बर राजा के दस्यूनों ने देखा । बस क्या था, वे तो तयार
थे ही । दृष्टिगत होते ही अस्त्रश्री सुविधि
शस्त्रों से सब उनलोगोंने संधानों पर हमला कर दिया । घोर संग्राम हमा । दस्युदल ने श्रष्ठी सहित दशहजार महा सुभटों को बन्धनबद्ध कर लिया। सारा धनमाल लेकर चलने लगे। श्रेष्ठी धबल हवका बक्का हो गया । अब कुछ भी उपाय नहीं सोच कर जोर मे चिल्लाया, "अरे, मुभांगरोमणि
श्रोपाल कहाँ हैं ? किधर गया ? बचाओ, आयो ।” धवल सेठ के साथ अन्य वीर भी कोलाहल मचानेलगे । सभी का स्वर श्रीपाल बीर को आह्वान करने लगे ।।७७, ७८, ७६ ।।
श्रुत्वा जनस्सतद्वार्ता श्रीपालस्सिह विक्रमः ।
महाधनुर्धरो वेगात्समुत्थाय प्रकोपतः ।।८।। अन्वयार्थ----(अनै:) सब वीरों की (तत्) उस (बार्ता) बात को (थुवा ) मुनकर (सः) बह (सिंहविक्रम:) सिंह के समान वीर (महाधनुः) विशाल धनुष (धर धारण करने वाला (श्रीपालः) श्रीपाल (प्रकोपतः) क्रोधित हुआ (वेगात्) वेग से (समुत्थाय) उठ कर
सिंहनादं विधायोच्चैर्गत्वा तत पृष्ठतोमहान् । कृत्वा युद्धं तथा रौद्रं जित्वातान् बर्गरान् द्रुतम् ।।१।। प्रमोचयन् निज तत्र श्रेष्ठिनतांश्च शक्तितः । साधते? भेटैस्सर्व पश्चादादायतद्धनम् ।।२।। यशस्सारं समं प्राप्प सुधीर्मधेश्वरों यथा ।
सत्यं स्वपूर्ण पुण्येन किं किं न स्याद्धि भूतले ।।३।। अन्वयार्थ— (उच्चैः) जोर से (सिंहनादम्) सिंहगर्जना (विधाय) वारके (महान ) श्रीपाल महान् (तत्पृष्ठतः) उनके पीछे (गत्वा) जाकर (तथा) तथा (रोद्रम् ) भयङ्कर (युद्धम् ) संग्राम (कृत्वा) करके (द्र तम्) शीघ्र ही (तान्) उन (बर्वरान् ) डाकुओं को