Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद ]
[२२३
(प्रा) बोला (भा) है ( सुधीः ) बुद्धिमन् (तत्) यह (किम् ) क्या है (इति) निदान, कारण कहो ।
भावार्थ- सहसा धवल श्रेष्ठी के जहाज कोलित हो गये । जब किसी प्रकार नहीं चल सके तो उसे परमाश्च हुआ । उसका धैर्य छूट गया । वह आकुल व्याकुल हो उठा । उसो समय उसने निमित्तज्ञानी को बुलाया और कारण के साथ उपाय भी पूछा ।१५२।। नैमित्तिकेन तेनोक्त हात्रिगल्लक्षणो नरः । करिष्यति करस्पर्श वजिष्यन्ति तवैवामी ॥ ५३ ॥
अन्वयार्थ ( तेन) उस (नैमित्तिकेन) निमित्तज्ञानी ने ( उक्तम् ) कहा कि ( द्वात्रिशल्लक्षण: ) बत्तीस लक्षण सम्पन्न ( नरः ) मनुष्य ( कर: ) हाथ से ( स्पर्शम ) स्पर्श ( करिष्यति ) करेगा ( तदा) तव (एव) ही (श्रमी ) ये जहाज ( वजिष्यन्ति ) चलेंगे ।
भावार्थ- विचार कर निमित्तज्ञानी ने बतलाया कि "जिस समय कोई वीर सुभग ३२ (बत्तीस ) लक्षणों से युक्त यहां आकर अपने कर कमलों से छयेगा तभी मे जहाज चलेंगे | अन्यथा नहीं || ५३ ॥
तदाकये च स श्रेष्ठी तं विलोकयितुं नरान् । प्रेषयामास सर्वत्र सादरं कार्य संभ्रमी ।।५४।।
श्रन्वयार्थ ( तदा) तब (ग्राकर्ण्य ) नैमित की बात सुनकर (स) उस (ष्ठी) सेठ ने ( कार्य ) काम ( संभ्रमो ) शोध करने का (त) उस ३२ लक्षण वाले पुरुष को ( विलोकयितुम् ) देखने के लिए ( सर्वत्र ) सब जगह ( साक्षरम् ) आदर से ( नरान् ) मनुष्यों को ( प्रेषयामास ) भेज दिया ।
भावार्थ अकस्मात् धवलसेठ के जहाज अटक गये । उसके श्राश्वर्य की सीमा न रही । उसने उसी क्षण निमित्तज्ञानी को बुलाया और कारण पूछा तथा जहाजों के चलाने का उपाय भी पूंछा । निमित्तिक ने उत्तर में कहा "कोई ३२ शुभलक्षण युक्त पुरुष अपने हाथ से इन जहाजों का स्पर्श करेगा तभी वे चलेंगे ।" यह सुनते ही शीघ्र कार्य करने की अभिलाषा से सेठ ने श्रादर पूर्वक चारों और अन्वेषकों को प्रस्थान करने का आदेश दिया || ५४ ॥