Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद]
[ ४५
पन्थ) को नहीं मानना अमूत दृष्टित्व है। इस अङ्ग में रेवती रानी प्रसिद्ध हुयी। इसी प्रकार दृढ़ श्रद्धान रखना कि ६५वॉ तीर्थकार, सग्रन्थ-कपड़ा वाला सदगुरु और छद्मस्थ कांजी भाई लिखित पुस्तके कभी भी देव गुरु शास्त्र का स्थान नहीं ले सकते। इसको मानना मिथ्यात्न है । इस प्रकार निश्चय करना अमूढ़ दृष्टित्व है ।
५. उपगृहनाङ्ग-धम और धर्मात्मा किली कारण व कर्मवश अपने स्वरूप से विपरीत चलें तो उसे सुधारना उनका प्रचार नहीं करना । अज्ञानी जनों द्वार! धर्म व धर्मात्माओं या स्वयं अपना अपलाप किया जाता हो तो उसका निवारण करना दोषों को प्रकट नहीं करना उपगुहन अङ्ग हैं । इसमें जिनेन्द्र भक्त श्रेष्ठो प्रसिद्ध हुआ।
६. स्थिति करण अङ्ग –सम्बग्दर्शन व चारित्र से यदि कोई विचलित होता हो या स्वयं में शैथिल्य पाया हो तो उसे धर्मावात्सल्यभाव से पुनः दर्शन व चारित्र में स्थिर करना स्थितिकरण अङ्ग कहा जाता है । यथा वारिपेण मुनि।
७. वात्सल्य अङ्ग--अपने साधर्मी जनों के प्रति निष्कपट भाव से गो-बत्सवत निस्वार्थ वात्सल्यभाव रखना प्रीति करना वात्सल्य अङ्ग है । जैसे बिष्ण कुमार मुनिराज ।
८. प्रभावना अङ्ग--अज्ञान तिमिर से व्याप्तजनों का अज्ञान भाव नष्ट हो जाय इस प्रकार अपनी प्रारमा और धर्म का प्रकाशन करना प्रभावना अङ्ग है । जिनविम्ब जिनालय निर्माग करना, पञ्चकल्याणादिका प्रतिष्ठाएँ अति वैभव से करना कराना, वीतरागी, साधं-साध्वियों का उत्साह पूर्वक विशेष उत्सब से नगरादि प्रवेश कराना तीर्थयात्रा को संघ ले जाना आदि प्रभाबना अङ्ग है । इस अङ्ग में वज्र कुमार मुनि प्रसिद्ध हुए हैं । इन सभी प्रङ्गों में प्रसिद्धों की कथा रत्नकरण्ड श्रावकाचार से जानना चाहिए । तथा ज्ञातकर अष्टाङ्ग सम्यग्दर्शन को पुष्टि करना चाहिए ।
सम्यग्ज्ञान के भी मेव हैं।
१. अर्थ या अर्थाचार- ज्ञात किये गये अर्थ या पदार्थ को सम्यक् प्रकार धारण करना।
२. व्यञ्जनाचार---शब्दों, अक्षरों का निर्दोष शुद्ध उच्चारण करना । ३. तदुभयाचार - शब्द और अर्थ दोनों की पूर्णता का होगा ।
४. कालाचार:-योग्य समय में ज्ञान का आराधन करना। प्रातः काल, मध्यान्हकाल, सायंकालं, भुकम्प, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, उल्कापात वज्रपात, आदि के समय ज्ञान का अाराधन नहीं करना चाहिए ! इन सबको छोड़कर योग्य समय में पठन पाठन मनन स्वाध्याय करना कालाचार है।
५. उपधानाचार-एकाग्रचित्त से ध्यानपूर्वक अध्ययन करना।
. ६. विनयाचार-शास्त्रों का उच्चासन पर विराजमान करना, नमस्कारादि कर विनय पूर्वक पढ़ना ।