Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
१६२]]
[श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद त्याग व्रत की शुद्धि के लिए (नित्यं) नित्य ही (पापप्रद) पापदायि (रात्रिभोजनम ) रात्रिभोजन (त्याज्यम ) त्यागने योग्य है ।
भावार्थ--रात्रि में सूक्ष्म जन्तुओं का अधिक संचार होता है । मच्छर, पतङ्गपादि दिन में सूर्य के प्रकाश में बाहर नहीं निकलते । सूर्यास्त के बाद उनका संचार होने लगता है । भोजन में गिर कर मर जाते हैं । उसके भोजन करने से मांस भोजन का पाप लगता है । इसलिए मांसत्याग मूलगुण को शुद्धि के लिए गत्रिभोजन का त्याग करना चाहिए ।।३७।।
। रात्रिभुक्ति परित्यागात् सम्पदो विविधा भवेत् ।
( रूप लावण्यसौभाग्य सम्प्राप्तिश्च दिने-दिने ॥३८।।
अन्ययार्थ--(रात्रिभुक्ति) रात्रि भोजन (परित्यागात) परित्याग करने से (बिविधा) नानाप्रकार की (सम्पदा) सम्पत्ति (भवेत्) होती है । (च) और (दिने दिने) प्रतिदिन (रूप) सौन्दर्य (लावण्य) आकर्पण (सौभाग्य) सुख-सम्पत्ति (सम्प्राप्तिः) प्राप्त होती है ।
भावार्थ - रात्रिभोजन का त्याग करने वाले को अनेकों सम्पत्तियाँ-धन वैभवादि प्राप्त होते हैं । प्रतिदिन सौन्दर्य बढ़ता है । रूप लावण्य को, सुख और शान्ति प्राप्त होती है ।।३।।
रात्रौ भूरि पतङ्गकोटपतनात्, तद्भक्षरणात् प्राणिनाम् । पापं पार विजितं भवति भो भव्या भवोत्पादकम् ॥ तस्मात् साधुजनैः विचारचतुरैः त्याज्यं निशाभोजनम् ।
येनस्यात् सुखकोटिरत्नपरतः कीर्ति प्रमोदः परः ।।३।। । अन्वयार्थ- (रात्री) रात्रि में (भूरि) बहुत से (कीट पतङ्ग) जन्तुओं के (पतनात् ) गिरने से युक्त (तद्) उस भोजन को (भक्षणात्) खाने से (प्राणिनाम्) प्राणियों के (पारविवर्जितम्) असीम् (पापम् ) पाप (भवति) होता है (भो भव्याः ) हे भव्यजनों ! (तस्मात् इस कारण से (विचारचतुरैः) विवेकीजनों, (साधजनेः) सज्जनों को (भवोत्पादकम) ससार जनक (निशाभोजनम् ) रात्रिभोजन (त्याज्यम ) त्यागना चाहिए । (येन) जिससे (कोटिरत्नपरतः सुख) करोड़ों रत्नों से उत्पन्न सुख से भी अधिक सुख (कोति) यश (प्रमोद:) प्रानन्द (परः) उत्तम (सुखम्) सुख (स्यात्) होगा । होता है।
भावार्थ- रात्रिभोजन त्याग की महिमा अपार है । इस व्रत का धारी असंख्य जीवों को अभयदान देता है । क्योंकि रात्रि में भोजन बनाने मे अथवा दिन में भी बनाकर रखने पर भी उसमें असंख्यात जीव पड़-पड़ कर मर जाते हैं । इससे अपरिमित पाप होता है । प्राचार्य श्री कहते हैं हे नव्यात्मन् भक्तजन हो, आप विवेको हो, विचार चतुर हो, तनिक सोचो, विचारो इस रात्रिभोजन त्याग से महासुख प्राप्त होता है । करोडों रत्नों का संचय करने पर