Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद १. सामायिक—चारों दिशाओं में क्रमश: ६-६ बारणमोकार मन्त्र पढ कर तीनतीन पावर्त और एक-एक शिरोनति नमस्कार करे । तत्पश्चात् यथाशक्ति समय की मर्यादाकर सर्वपापों से निवृत्त हो एकाग्रचित से ध्यान या किसी भी मन्त्र का जाप करे। यह सामायिक शिक्षाव्रत है।
२. प्रोषधोपवास--महीने में दो अष्टमी और दो चतुर्दशी आती हैं। इन पर्वकालों में यथाशक्ति प्रोषध-एकाशन, उपवास अथवा प्रोषधोपवास १६ पहर का उपवास करना । यथा अष्टमी का प्रोषधोपवास करना है तो ७ मी और नवमी को एकभुक्ति और अष्टमी को उपवास करना यह प्रोषधपूर्वक उपवास प्रोषधोपवास कहलाता है।
३. भोगोपभोगपरिमाण जो पदार्थ एकबार भोगने में पाते हैं बे भोग हैं यथाभोजन, तैल, पानादि । जिन पदार्थों का बार-बार भोग किया जा सके उन्हें उपभोग कहते हैं । इन भोग और उपभोग के पदार्थों की सीमा मर्यादा करना भोगोपभोग परिमाण शिक्षानत है।
४. अतिथिसंविभाग---उत्तम, मध्यम, जघन्य पात्रों को आहारादि दान देना अतिथिसंविभाग शिक्षावत है ।।५३।। सामायिक शिक्षाव्रत का लक्षण--सामायिक करते समय क्या करना चाहिए
समता सर्वजीवेषु संयमे शुभभावना । हिंसारम्भपरित्यागस्तावत्कालं जगद्धितः ॥५४॥ चैत्यभक्तिस्तथा पञ्चगुरुभक्ति विशेषतः । वैराण्यभावनाचित्ते तथा दुनिवर्जनम् ॥५५॥ द्वित्रिसन्ध्यां सुतेभौस्सामायिकविधिर्महान् ।
स्वर्गमोक्षसुखप्राप्त्यौ कर्तव्यो निश्चलाशणैः ॥५६॥
अन्वयार्थ-(तावत्कालम) जितने समय सामायिक करे तब तक (सर्वजीवेषु) प्राणीमात्र में (समता) साम्यभाव-राग-द्वेष परित्याग (संयमे) संयम में (शुभभावना) शुभभाव, (हिसारम्भ) हिंसा और आरम्भ का (त्यागः) त्याग (जगद्धितः) विश्वहित की भावना (विशेषतः) विशेष रूप से (चैत्यभक्तिः) चैत्यभक्तिः) चैत्यभकि पढना (तथा) और (पञ्चगुरुभक्तिः) पञ्चगुरुभक्ति पाठ (चित्ते) मन में (वैराग्यभावना) संसार शरीर भोगों से विरक्ति (तथा) और (दुर्ध्यान) प्रातरौद्रध्यान (वर्जनम्) त्याग करते हुए (हे सुते) हे पुत्रि (द्वित्रिसन्ध्यम ) प्रातः व सायंकाल, अथवा प्रात: मध्यान्ह और सायंकाल (स्वर्गमोक्षसुखप्राप्त्य) स्वर्ग और मोक्षसुख पाने के लिए (निश्चलाशयः) स्थिरचित्त से (भव्यः) भव्यों द्वारा (महानसामायिक विधि:) महान सामायिक विधि (कर्तव्यः) करना चाहिए।
भावार्थ हे पुत्रि ! भव्य श्रावक श्राविकाओं को प्रातः और सन्ध्या समय सामायिक