Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद] अवश्य करना चाहिए । सामायिक प्रतिमाघारी को तोनों सन्ध्याओं में प्रातः, मध्यान्ह और सायंकाल सामायिक विधि करना अनिवार्य है । जघन्य ४८ मिनिट से ७२ मिनिट अथवा २१ सवादो घण्टे यथाशक्ति सामायिक करना चाहिए। अथवा हर क्षण सामायिक हो सकती है । सामायिक के लिए प्रथम समय की मर्यादा करे, समस्त जीवों में समताभाव धारण करे, संयम में रामभावना बिना लिया और प्रसारका श्याग करे, चैत्यभक्ति और पचगरूभक्ति का पाठ करे, चित्त में वैराग्य भावना चिन्तवन करे, प्रार्त-रौद्रध्यान का परित्याग करे । धर्मध्यानपूर्वक द्वादशानुप्रेक्षाओं का चिन्तवन करे । इस प्रकार सामायिक क्रिया करे । यही सामायिक शिक्षा व्रत हैं ।।५.६।। अब द्वितीय शिक्षाव्रत का लक्षण कहते हैं -
अष्टम्यां चतुर्दश्यां चतराहारबजितम् ।
सशीलं सधोपेतं तद् द्वितीयं व्रतंमतम् ॥५७॥ अन्वयार्थ— (सशीलम् ) शीलवत सहित सयोपेतम् ) सम्यक् दया सहित (अष्टम्यां) अष्टमो (चतुर्दश्याम ) चतुर्दशी के दिन में (चतुराहार) खाद्य, स्वाद्य, लेह और पेय इन चार प्रकार के आहारों को (बजितम् ) छोडना (तद्) वह (द्वितीय) दूसरा प्रोषधोपवास (प्रतम्) प्रत (मतम् ) माना है ।।५।।
भावार्थ-अष्टमी और चतुर्दशी को चार प्रकार के आहार का त्याग करना । खाद्यलाडू, रोटी, भात, पकौडी, मठरी, पेड़ा आदि खाद्य है। बाद्य-लवङ्ग इलायची पान-सुपारी सौंफ आदि स्त्राद्य भोजन है। लेह-रबड़ी, राबड़ी, मलाई आदि चाटने वाली चटनी आदि लेह्य हैं । तथा पेय-दूध, पानी, शर्वत. मट्ठा वगैरह पीने के पदार्थ पेय हैं । इन चारों प्रकार के पदार्थों को इन्द्रियदमन के उद्देश्य से त्याग करना प्रोषधोपवाम नाम का दूसरा शिक्षाव्रत है। इस दिन ब्रह्मचर्य धारण करें दयाभावना धारण करें । यह नहीं कि उपवास तो करले और फिर कोपाकुल हो बाल-बच्चे, रोगी, वृद्धों की सेवा न करें उनपर चिड़चिड़ करें अपितु प्राणीमात्र के प्रति दया और क्षमा का भाव रखना चाहिए।
भोगोपभोगयोस्संख्या श्रावकानां च या भवेत् ।
शिक्षावतं तृतीयं तत् संजगुमुनिसत्तमाः ॥५८।। अन्वयार्थ -(श्रावकानां) श्रावकों की (या) जो (भोगस्य) भोगपदार्थों में (च) और (उपभोगस्य) उपभोग के पदार्थों सम्बन्धी संख्या (प्रमाण भवेत) होता है (मुनिसत्तमाः) गणधरादि (तत्) उसे (तृतीयम्) तीसरा भोगोपभोगपरिमाण नाम का (शिक्षाव्रतम्) शिक्षाव्रत (संजगुः) कहते हैं।
भावार्थ--भोजन, पानादि भोग की वस्तुओं और प्राभरणा, मकानादि उपभोग के पदार्थों की संख्या-सोमा निर्धारित करना तीसरा भोगोपभोगपरिमाण नामका शिक्षावत है।