Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
२१८]
[ श्रीपाल चरित्र चतुर्थ परिच्छेद अन्वयार्य- (प्रिये) हे देवि ! प्रिये (स्व) अपने (चित्ते) मन में (पुन:-पुनः) बार-बार (मम) मेरा (मङ्गलम् ) कल्यागा (वा) हामक समायविकारणे, हे जयकार्यों में विचक्षण मते (त्वम् ) तुम (निषेधार्थम्) निषेध करने वाला बचन (मा) मत (वादी:) बोलो।
भावार्थ-लोक में प्रसिद्ध है कि कोई व्यक्ति यदि किसी शुभकार्य के लिए विदेश प्रयाण करता हो तो उसे "मत जा" ऐसा नहीं कहना चाहिए । क्योंकि यह अपशकुन माना जाता है । अतः श्रीपालजी मदनसुन्दरी को कहते हैं हे शोभने ! तुम समस्त लौकिक कार्यों की ज्ञाता हो, शुभाशुभ कार्य दक्ष हो. नाना व्यवहारों को जानने बाली हो । अतएव प्रयाण काल में तुम्हें बार-बार अपने मन में मेरा कल्याण विचारना चाहिए । मेरे मङ्गल की कामना करो । जाने के समय निषेध करना उचित नहीं है । इसलिए हे कान्ते ! आप निषेध वाचक वचन नहीं बोलना ।।२२।।
इत्याक्षेपे निषिद्धाश्च सा जगौ नाथ कदा तत्र
दर्शनं वद मे सत्यं भी स्वामिन् प्राण रक्षक ! ॥२३॥
अन्वयार्थ -- (इति) इस प्रकार (आक्षेपे) उलाहना देकर (निषिद्धाः) रोकी गई (सा) वह कामिनी (जगी) बोली (नाथ ! ) हे नाथ (भो स्वामिन्) हे स्वामिन् (च) और (प्राणरक्षक ! ) हे प्राणरक्षक ! (तव) आपका (दर्शनम् ) दर्शन (कदा) कब होगा (मे) मुझे (सत्यं) यथार्थ (वद) कहिये ।
भावार्य --अपशकुन का तायना देकर श्रीपाल ने अपनी प्रिया को साथ जाने से रोक दिया । अकल्याण की आशङ्का से पतिपरायणा उसने भी स्वीकार कर लिया। ठीक ही है सती, पति की अनुगामिनी, शीलवतो नारियां छायावत् पति आज्ञा का अनुसरण करती हैं। तो भी किसी प्रकार हृदय के शोकप्रवाह के वेग को रोक कर वह सती कहने लगी, हे देव, हे नाथ, हे प्राणरक्षक ! भो स्वामिन्, अब आपका शुभ, कल्याणकारी दर्शन कब होगा ? यह यथार्थ, सत्य बतलाइये |॥२३॥
वर्षे द्वादशभिस्सत्यं संयोगो मे त्वया समम् ।
तेनोक्तमिति सा कर्ण्य सजगाद प्रभो शृण ॥२४॥
अन्वयर्थ-(तेन) श्रीपाल द्वारा (उत्तम् ) कहा गया (इति) इस प्रकार, (सत्यम्) निश्चय ही (द्वादशभिः) बारह वर्षों (वर्षेः) वर्ष के अन्दर (त्वया) तुम्हारे (समम:) साथ (मे) मेरा (संयोगो) संयोग (भविष्यति) होगा (इति) इस प्रकार (आकर्ण्य) सुनकर (सा) वह (सञ्जगाद) सम्यक् वचन बोली (प्रभो) हे प्रभो (श्रुण ) सुनिये ।।२४।।
मावार्थ--श्रीपाल ने उत्तर दिया "हे सुभगे, निश्चय ही बारह वर्ष में मेरे साथ तुम्हारा संयोग होगा।” इस प्रकार सुनकर मदनसुन्दरी कहने लगी, हे देव ! मैं कुछ कहना चाहती हूँ कृपया सुनिये ।।२४॥