Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद ]
तुच्छ बुध्याऽपि ते किञ्चिद्वचो वक्ष्ये विचक्षण ! श्रीमज्जिनेन्द्रसद्धर्मो न विस्मार्यः कवाचनः ||२५||
श्रन्वयार्थ — ( विचक्षण ! ) हे विलक्षणमते ! ( तुच्छ) लघु ( बुद्धयाऽपि ) बुद्धि होने पर भी (ते) आपके लिए ( किञ्चिद्) कुछ ( वचः ) वचन ( वक्ष्ये) कहूँगी, ( कदाचन) कभी भी ( श्रमज्जिनेन्द्रसद्धर्मः) श्रीजिनेन्द्र भगवान का उत्तम धर्म (न) नहीं (विस्मायें :) भूलना ।
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भावार्थ- हे अद्भुतमते ! आपके समक्ष मैं ( मैनासुन्दरी ) तुच्छ बुद्धि हूँ तो भी कुछ हितकारी वचन कहती हूँ । प्राप कभी भी श्रीमज्जिनेन्द्र भगवान कथित सद्धर्म को कभी भी नहीं भूलना | सतत स्मरण रखना ||२५|| तथा और भी
चिन्तनं सिद्धचक्रस्य कर्तव्यञ्च त्वयानिशम् ।
सारपञ्चनमस्कारान्स्वामिन्स्वर्गापवर्गदान ॥२६॥
अन्ययार्थ (च) और ( स्वामिन् ) हे स्वामिन् ( त्वया ) आप ( अनिशम् ) रातदिन (सिद्धचक्रस्य) सिद्धचक्र का (च) और (स्वर्ग) स्वर्ग (अपवर्ग) मोक्ष (दान) देनेवाला (पञ्चनमस्करान् ) पञ्चपरमेष्ठी वाचक महामन्त्र का ( चिन्तनम् ) चितवन ( कर्तव्यम् ) करते रहना चाहिए ।
भावार्थ - हे स्वामिन् श्राप निरन्तर ही स्वर्ग- मोक्ष के देने वाले श्री सिद्धचक्र का तथा पञ्चनमस्कार मन्त्र का चिन्तवन करते रहना । हमेशा ध्यान करियेगा | हृदय में इनका चिन्तन करते रहियेगा ।। २६ ।। तथा
नित्यं चिन्तयतः पुंसो भवन्ति सुखकोटयः ।
पच्चैते गुरुवस्तस्मात् त्वया प्रनिशं परम् ॥। २७ ॥
प्रन्वयार्थ - - ( एते ) इन (पञ्च ) पाँचों (गुरुवः ) गुरुओं का ( चिन्तयतः ) चिन् वन करने वाले (पुसाः) पुरुषों को (नित्य) सदा ( सुखकोटयः ) करोड़ों सुख ( भवन्ति ) होते हैं, ( तस्मात् ) इसलिए ( त्वया) प्राप द्वारा भी ( अनिशम् ) रात-दिन (परम ) विशेष रूप से (ध्येयाः ) ध्यान करना चाहिए ||२७||
भावार्थ पञ्चपरमेष्ठी का ध्यान करने वालों को संसार में करोड़ों सुखों की प्राप्ति होती है । इसलिए आप सदा ही पञ्चपरमेष्ठी का स्मरण, ध्यान करते रहियेगा । अर्थात्