Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद
संविभागो भवेत् त्यागास्त्यागौदानञ्च पूजनम् । तद्दानं च बुधैर्वेयं त्रिधा पात्राय भक्तितः ॥ ५६ ॥
श्रन्वयार्थ - ( भक्तितः ) भक्तिपूर्वक ( त्रिधा ) उत्तम, मध्यम, जघन्य तीन प्रकार के ( पात्राय) पात्र की (देयम) देने योग्य पदार्थो का ( त्यागाः ) त्याग करता ( दानम् ) दान (संविभाग: ) अतिथि संविभाग ( भवेत् ) होता है । (च) और ( पूजनम ) पूजा को (देयम् ) योग्यपदार्थ देना (त्यागः ) त्याग ( भवेत् ) होता है (तद्दानं ) वह दान ( बुधैः ) विद्वानों को (देयम्) देना ए
भावार्थ - - प्रतिथि-न तिथि, जिनके आगमन की कोई तिथि निश्चित नहीं होती वे दिगम्बर साधु अतिथि कहे जाते हैं। वे पात्र उत्तम, मध्यम और जघन्य के भेद से तीन प्रकार के होते हैं । उनके योग्य आहारादि वस्तु दान देना प्रतिथिसंविभाग व्रत है। तथा पूजा के योग्य द्रव्य त्याग करना भी अतिथिसंविभागवत में किन्ही प्राचार्यों ने माना है। विद्वानों को अवश्य ही यह व्रत धारण करना चाहिए अर्थात् दान और पूजन करना चाहिए ।। ५६ ।।
पात्रों के भेद कहते हैं
मुनीन्द्राः श्रावकाः शुद्धस्सम्यग्टष्टिश्च केवलम् । इति पात्रत्रिभेदेभ्यो दानं देयं चतुविधम् ॥६०॥
श्रन्वयार्थ - ( मुनीद्राः) दिगम्बर साधु ( श्रावका ) प्रतिमाधारी (च) और (केवल) मात्र ( शुद्धसम्यग्दृष्टि: ) सम्यग्दर्शनधारी (इति) इस प्रकार ( पात्रत्रिभेदेभ्यः ) तीन प्रकार के पात्रों के लिए (चतुर्विधम् ) चार प्रकार का ( दानं ) दान (देयम् ) देना चाहिए ।
भावार्थ --निर्ग्रन्यदिगम्बर साधु, प्रतिमाधारी व्रतीभावक और असम्यग्वष्टि के भेद से पात्र तीन प्रकार के होते हैं | दान पात्र को ही दिया जाता है । अन्य को दिया हुआ दान नहीं होता । करुणादान कहा जाता है। व्रतियों को चार प्रकार का दान अवश्य देना चाहिए ॥६०॥
श्राहाराभयभैषज्यशास्त्रदानं जगद्धितम् ।
बेथं पुत्रि ! सुपात्रेभ्यो विधिना धर्महेतवे ॥ ६१ ॥
श्रन्वयार्थ - (पुत्रि ! ) है पुत्रि ! (सुपात्रेभ्योः) श्रेष्ठ पात्रों को ( विधिना ) विधिसहित (धर्महेतवे ) धर्म के लिए (आहाराभय भैषज्यशास्त्रदानम् ) श्राहार, अभय, औषध और शास्त्र दान ( जगद्धितम् ) संसार का कल्याण करने वाला ( दानम् ) दान (देयम् ) देना चाहिए ।
भावार्थ--चार प्रकार का दान तीन प्रकार के पात्रों को धर्मभावना से देना चाहिए ||६१ ||