Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद छोड़कर सतत निर्मल बुद्धि से इस धर्म को धारण करो, पालन करो। जिस प्रकार सफल उत्तम फसल के लिए भूमिशुद्धि-अर्थात् भले प्रकार जोतना, उत्तम बीज होना, समय पर बोना आवश्यक है उसी प्रकार धर्मवृक्ष आरोग के लिए पिताको भूमि का मातमा प्रयात रागद्वेष, कषायादि कर परिणामों का निकालना, शुभभाव-श्रद्धा-भक्ति रूपए बीजों का होना, तथा पर्वादिकाल में योग्य प्रतोपवास पूर्वक प्रभावना करना आवश्यक है। इस प्रकार विधिवत् सेवन किया धर्म स्वर्गादि के साथ अनुक्रम से मुक्तिरूपी फल प्रदान करता है । अतः अविनश्यर सुनेच्छु प्रों को निरन्तर धर्म में प्रोति करना चाहिए ।। १८२।।
इति श्री सिद्धचक्रपूजातिशयान्विते श्रीपालमहाराजचरिते भट्टारक श्री सकलकीर्ति विरचिते श्रीपालमहाराज सद्धर्मश्रवण, श्रीमद् सिद्धचऋपूजन, समस्तव्याधिविनाश, राजसन्मानादि व्यावर्णनोनाम त्रितयः परिच्छेदः ।।
॥श्री सिद्धेभ्यो नमः मङ्गलम् महामङ्गलम्।।