Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद ]
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भी जो आनन्द मिलता है उससे भी कोटिगुणा आनन्द और सुख इस व्रत से प्राप्त होता है। इसलिए धर्मात्मायों को इस भव-संसार उत्पादक निशाभोजन का सर्वभात्याग करना चाहिए ||३६||
अब जल छानने का विधान वर्णन करते हैं-
( जलानां गालनं पुण्यं प्रसिद्धं भुवनत्रये ।
तस्मादगालितं तोयं, वर्जनीयं विवेकिभिः ॥४०॥
अन्वयार्थ - ( भुवनत्रये) तीनों लोकों में ( जलानाम् ) पानी का ( गालनम् ) छानना (प्रसिद्ध ) प्रसिद्ध ( पुण्यम) पुण्य हैं ( तस्मात) इसलिए ( अगालित) बिना छना ( तोयम् ) पानी ( विवेकिभिः) विवेकीजनों द्वारा ( वर्जनीयम् ) त्यागना चाहिए ।
भावार्थ - तीनों लोकों में पानी का छानना पुण्य कारण है यह सुप्रसिद्ध है । इसलिए विचारज्ञजनों को बिना छना जल त्यागना चाहिए । अर्थात् छाने बिना जल को किसी भी कार्य में नहीं लाना चाहिए ||४०||
जल किस प्रकार छानना चाहिएछन्ना कैसा हो-
षट्त्रिंशदंगुलं वस्त्रं चतुविशति विस्तृतम् । तद्वस्त्रं द्विगुणीकृत्यतोमं तेन तु गालयेत् ॥ १४१ ॥
श्रन्वयार्थ -- ( षट्शदंगुलं ) ३६ - छत्तीस यंगुल का ( वस्त्रं ) कपड़ा ( चतुर्विंशति) जौबीस अंगुल (विस्तृतम्) चौडा है (तद्वस्त्रम् ) उस कपड़े को ( द्विगुणी ) दुहरा--दोपत ( कृत्य ) करके (तु) और (तेन) उससे ( तोयं ) जल को (गालयेत् ) छाने ।
भावार्थ - छत्तीस अंगुल लम्बा और २४ - चौबीस अंगुल चौड़ा वस्त्र लेकर उसे दोहरा करें। इस प्रकार हरे कपड़े से पानी को छानना चाहिए। अव्यवा जितना वर्तन हो उसके अनुसार रखें ।
यस्मात् तोयं समानीतं गालयित्वाति यत्नतः । तज्जीवसंयुतं तोयं पुनः तत्रेव मुच्यते ॥ ४२ ॥ |
अन्वयार्थ -- ( तस्मात् ) इसलिये ( तोयम् ) जल को ( यत्नतः) सावधानी से ( गालfarar) छानकर (समानीतम्) लाना चाहिए (पुनः) फिर (तत्) उस ( जीवसंयुतं तोयम ) जीवानी को छानने पर बचे - जल को (तत्रैव) उसी जलाशय में ( मुच्यते ) डालना चाहिए ।
भावार्थ - भव्य दयालु श्रावकों को यत्न पूर्वक पानी छानकर लाना चाहिए। ऊपर कहे हुए प्रमाण वाला छन्ना कुआ या तालाब आदि पर लेकर जाना चाहिए। वहीं पर पानी छानकर भरे । तदनन्तर छन्ने में आयी जीवराशि को थोडा पानी डालकर घड़े या खाली