Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद
भावार्थ--- मदन सुन्दरी मुनिराज जी से पूछने लगी। हे कृपासागर आपने इस व्याधी का कारण कर्म कहा, सो सत्य है । अब इस अशुभ पाप रूप कर्म के नाश का उपाय भी आपही कहने में समर्थ हैं । हे प्रभो इस रोग मुक्ति का उपाय बताने की दया करें। आपके अतिरिक्त और कौन इलाज कर सकता है ? रात्रि में व्याप्त तुमुल-सघन अंधकार का नाश सूर्य को छोड़कर भला और कौन कर सकता है ? कोई नहीं ||१५||
तनिशम्य मुनीन्द्रोऽपि जगौ संज्ञानलोचनः । शृणत्वं सावधानेन चेतसा ते गदाम्यहम् ॥। १६ ।।
अन्वयार्थ ( निशम्य ) मदनसुन्दरी की प्रार्थना को सुनकर (संज्ञानलोचन: ) सम्यग्ज्ञान रूपी नेत्रधारी ( मुनीन्द्रः ) मुनीश्वर (अपि) भी (जगी) बोले हे पुत्र ! ( त्वम) तुम ( चेतसा ) चित्त ( सावधानेन ) सावधान करके (शृण) सुनो ( ग्रहम ) मैं (ते) तुम्हारे लिए उपाय ( गामि ) कहता हूँ ||१६||
भावार्थ -- धर्मरता मैना के दुःख से द्रवित आचार्य श्री उसकी प्रार्थना सुनकर कहने लगे । हे बेटी तुम एकाग्र मन से सुनो। मदनसुन्दरी ने कहा, प्रभुवर ! आप सम्यग्ज्ञान रूप नेत्रों के धारी हैं । अर्थात् आगम ही आपके नेत्र हैं । मुनिराज कहने लगे
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सम्यक्त्व पूर्वकं पुत्रि ! जिनधर्म प्रपालनम् । पूजनं सिद्धचक्रस्य सर्वरोग निवारणम् ॥२०॥
अन्वयार्थ - ( पुत्रिः ) हे पुत्रिके ( सम्यक् पूर्वकम् ) सम्यग्दर्शन सहित ( जिनधर्म ) जैनधर्म (प्रपालनम् ) पालन करना तथा ( सर्वरोगनिवारणम् ) सम्पूर्ण रोगों को नष्ट करने वाले ( सिद्धचक्रस्य) सिद्धचक्र की (पूजनम् ) पूजा करना तथा और भी -
भो सुते सर्वकार्याणि सिद्धन्ति जिनधर्मतः । स्वर्गोमोक्षश्च धर्मेण का वार्ता परवस्तुषु ॥ २१ ॥
अन्वयार्थ - (भो) हे (सुते ) पुत्रि ! (जिनधर्मतः ) जिनधर्म प्रसाद से ( सर्वका र्याणि सर्व कार्यो की (सिद्धन्त) सिद्धि होती है - सिद्ध होते हैं (स्वर्गः ) स्वर्ग (च ) और (मोक्षः) मोक्ष भी ( धर्मेण ) धर्म द्वारा मिलते हैं ( परवस्तुषु ) अन्य वस्तुनों को (का) क्या (वार्ता) बात है |
भावार्थ हे बाले ! तुम सम्यक्त्व सहित जैनधर्म का पालन करो। दृढ़ श्रद्धा और असीम भक्ति से सिद्धचक्र की पूजा करो। यह सिद्धचक पूजा समस्त रोगों के उपशमाने को रामवाण औषधि है | जिनधर्म महान है। इसके द्वारा समस्त कार्यों की सिद्धि अनायास ही हो जाती है। धर्म से ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है यही नहीं मोक्ष की प्राप्ति भी धर्म से ही होती है ।