Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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श्रीपाल चरित्र तृतीय परिच्छेद]
[१३७ तदनन्तर यह दुखद कर्मवृक्ष का फल भी कटु प्राप्त हुआ है । तो भी शान्ति से यह भी पार होगा । संसार में चक्रवत् सुख दुःख भ्रमण करते है ।।१५।।
चिन्तां मा कुरु भो पुत्रि भर्तृ तेऽयं भविष्यति ।
दिब्यरूपी च नियाधी राज्यं प्राप्स्यति च ध्रुवम् ।।१६।। अन्वयार्थ---पुनः मुनिराज कहने लगे-(भो पुत्रि ! ) हे पुत्रि ! (चिन्ताम् ) चिन्ता (मा) मत (कुरु) करो (अयम् ) बह (ते) तुम्हारा (भत्तु) पति (दिव्यरूपी) अलौकिकसौन्दर्यशाली (भविष्यति) हो जायेगा (च) और (निाधि) रोग रहित भी होगा तथा (च) और (ध्र वम् ) निश्चय से (राज्यम ) राज्य (प्राप्स्यति) प्राप्त करेगा ।
___ भावार्थ - अमृत समान मधुर वाणी में मुनिराज कहते हैं हे वेटो ! तुम चिन्ता मत करो, शोक तजो, प्रफुल्ल होओ। कुछ ही समय में तुम्हारे पति का कुष्ठरोग सर्वथा नष्ट होगा । कामदेव सदृश इसका रूप-लावण्य निखरेगा। यही नहीं निकट भविष्य में नियम से अपना राज्य प्राप्त करेगा ।।१६।।
सा चोवाच सती तत्र पुनर्मदनसुन्दरी ।
भो स्वामिन् भवताप्रोक्तं तत्सत्यं संभविष्यति ॥१७॥ अन्वयार्थ-हर्ष से गद्गद् हुयी मैनासुन्दरी कहने लगी--(सा) वह मैंना (सतो) शोलवती (उवाच) बोलो (पुन:) फिर (मदनसुन्दरी) मैंनासुन्दरी (भोस्वामिन्) हे स्वामिन् (भवता) अापके द्वारा (प्रोक्तम् ) कहा हुआ जो है (तत्) वह (सत्यं) यथार्थ (संभविष्यति) ही होगा।
भावार्थ हे बीतराग! हे गुरुदेव पाप सत्यवादी हैं । आपके निर्मलज्ञान में यथाथता ही प्रतिभासित होती है। हे परमपूज्य आपकी भविष्यवाणी अवश्य ही तदनुरूप फलित होगी । इस प्रकार उस सम्यक्त्वभुषिता मदनसुन्दरी ने गुरुवचन स्वीकृत किये । वह सम्यग्दर्शन मण्डित थी । देव, शास्त्र, गुरु वाणी पर उसका अकाट्य विश्वास-श्रद्धान था । अतः जैसा मुनिराज ने बताया है वैसा ही होगा इस प्रकार निश्चय कर परम हर्ष को प्राप्त हुयी ।।१७।। पुनः सुन्दरी पूछती है -
तत्रोपायं कृपासिन्धो बाढं त्वं वक्तमहंसि ।
रानेन्तिं निराक कः क्षमो भास्कर बिना ॥१८॥ ___ अन्वयार्थ - पुनः (कृपासिन्धो) हे कृपासागर (तत्र) उस व्याधी के नाश का (उपायम् ) उपाय (वक्तुम ) कहने में (अर्हसि) समर्थ हैं (बाद) निश्चय ही (रात्रे:) रात्रि के (ध्वान्तम् ) अन्धकार को (निराकर्तुम ) दूरकरने को (भास्करं विना) सूर्य के सिवाय अन्य (क:) कौन (क्षमः) समर्थं है ।