Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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"श्री मत्परम गुरुभ्यो नमः "अथ द्वितीय परिच्छेद" अथ जम्ब्रमति द्वीपे सर्वसम्पन्मनोहरे । मेरोदक्षिण दिग्भागे क्षेत्रे भरतसंज्ञके ॥१॥ पवित्र श्री जिनाधीश ! सार जन्म महोत्सवैः । अंलोयय जगतावृन्द परमानन्द दायकः ॥२॥ तत्क्षेत्रे मध्यभागे भादवन्ति विषयो महान् ।
सज्जनो वा गुणैर्युक्तो मनोनयन वल्लभः ॥३॥
अन्वयार्थ-(अथ) अब कया प्रारम्भ होती है (जम्बूमति द्वीपे) जम्बू वृक्ष वाले जम्बूद्वीप में (त्रैलोक्य जनता वृन्द) तीनों लोकों के प्राणीसमुह को (परमानन्द दायकः) परमानन्द को देने बालं (श्री जिनाधीशसारजन्म महोत्सव:) श्री तीर्थकर प्रभु के सारभूत जन्म कल्याण महोत्सवों के द्वारा शोभायमान (भरत संज्ञिके पवित्र क्षेत्र) भरत नामक पवित्र क्षेत्र में (तन्मध्य भागे) उसके बीचों-बीच में {महान अवन्ति देश) महान अवल्ति नामक देश (भात्) सुशोभित था जो (गुणैः सज्जनों व) गुणों से सत्पुरुष ही हो ऐसा (मनोनयन वल्लभः) मन और नेत्रों को प्रिय था ।
सरलार्थ-भगवान् महावीर स्वामी कहने लगे कि जम्बू वृक्ष से शोभित जम्बूद्वीप नामक सुन्दर द्वीप है जिनके मध्य में सुमेरु पर्वत है । उस सुमेरु पर्वत के दक्षिण भाग में धन, जन, विद्या वैभव से सम्पन्न भरत क्षेत्र नाम का क्षेत्र है । उस क्षेत्र में निरन्तर तीर्थंकरों का जन्मोत्सव होता रहता है । अत: महा महोत्सवों से वह परम पावन है, ये जन्म महोत्सव तीनों लोकों के जीवों को आनन्द देने वाले होते हैं। इस अत्तम भरत क्षेत्र के ठीक मध्य में अवन्ति देश शोभायमान है। तथा जन, धन, वैभव, गुण, ज्ञान, विज्ञान की सम्पन्नता होने से यह देश सत्पुरुष के समान शोभायमान' था।
भावार्थ-मध्य लोक में असंख्यात द्वीप समुद्र हैं। इनके बीचों-बीच "जम्बूद्वीप'' नाम वाला द्वीप है। इसमें 'जम्बू वृक्ष है।' यह पृथ्वीकाय है और एक लक्ष परिवार वृक्षों से वेष्टित है । इनकी पूर्व शास्ना पर 'अनावत' देव जी १० लक्ष व्यन्तरों का अधिपति है निवास करता है । इस वृक्ष के निमित्त से ही यह द्वीप जम्बुद्वीप नाम से प्रसिद्ध है। इसके बीच मध्य में सुमेरु पर्वत १ लक्ष ४० योजन उन्नत स्थित है। इस मेरु की दक्षिण दिशा में भरत क्षेत्र