Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[ श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्छेद सर्वेषां कुष्ठिना तेषां राजत्त्वेन विराजितम् । गर्वभादिकसामग्रयासमेतं काहलान्वितम् ॥६॥ गोपुच्छ चमर द्वन्दे कुष्ठिनस्तस्यपाययोः । छत्रस्यधारकः कुष्ठी जलधारी च कुष्ठिकः ।।१६॥ ताम्जलदायकः कुष्ठी कुष्ठिनोऽप्यारक्षकाः। सामन्ताः कुष्ठिनो घण्टावादित्रेषु च कुष्ठिनः ॥१००।। मन्त्रिणः कुण्ठिनस्तस्य सेवकाः कुष्ठिनस्तथा । तोग्रफर्म विपाकेन भाण्डागारी च तादृशः ॥१०१॥ इत्यादि कुष्ठिभियुक्त तं समालोक्ययूरतः ।
साश्चर्य मन्त्रिणं प्राह भो मन्त्रिन्कोऽयमद्धतः ॥१०२ अन्धयार्थ- (तत्र) वहीं वन में (तदा) उस समय (कर्मवशात् ) कर्मानुसार (सन्मुखमागतम्) सामने आये हुए (द्विशरीरंसमारूढ़) दूसरे ही शरीर को धारण किये हुए
पलाश छत्रिकान्वितम) पलाश के पत्रों का छत्र जिस पर था ऐसे (च) और (सप्तशत्या। सात सौ (कुष्ठीनां ) कुष्ठियों के साथ (मतः) सैकड़ों (मक्षिकाः) मक्खियों से (वेष्टितम् ) घिरा हुआ (च) और (स्वर्ष) अपने भी (उदुम्बराकारकुष्ठेन) उदुम्बर फल के आकार वाले कुष्ठरोग से (परिपीडितम् ) अत्यन्त दुखी (तेषां सर्वेषां कुष्ठीनाम) उन सभी कोड़ियों के (राजन्वेन) शासक पने से (विराजितम् ) शोभित (बाहलान्वितम्) झांझमजीरादिश्रुत (गर्दभादिकसामग्रया) गधे आदि सामग्रियों से (समेतम) सहित तथा (तस्थपायोः ) उसके दोनों और बगल में (कुप्छिनः) कुष्ठी (गोपुच्छ चामर द्वन्दे) चमरी गाय की पूछ के बालों से निर्मित दो चामर ढोरने वाले (सेवकाः) सेवक जन थे (छत्रस्यधारक :) छत्र धारण करने वाला (कुष्ठो) कोढी (च) और (जलधारो कुष्ठिक:) जल पिलाने वाला कोड़ी (ताम्बूलदायक:) पान देने वाला (कुष्ठी) कोढी (अङ्गरक्षका :) अङ्ग रक्षक भी (कुष्ठिन:) कोडी (सामन्तः) सामन्त भो (कुष्ठिनः) कोढी (घण्टावादिषु) घण्टा बजाने वाले भी (कुष्टिनः) कोढी ही (मन्त्रिण:) मंत्री भी (कुष्टिमः) कोढी ही हैं (कुष्ठिभिः) कोढियों से (युक्त) सहित (तं) उस श्रीपाल को (दूरत:) दुर ही से (समालोक्य ) देखकर (साश्चर्य) आश्चर्य से (मन्त्रिण) मंत्री को (प्राह) बोला (भोमन्त्रिन) हे मन्त्रिम् (अयम्) यह (अद्भुतम्) अनोखा व्यक्ति (कः) कौन है।
भावार्थ--वनक्रीड़ा करने की इच्छा से प्रजापाल राजा सपरिवार ससैन्य वन में गया ! आमोद-प्रमोद की समस्त साम्रगी साथ थी । रणवास भी साथ था वह नाना प्रकार के मनोरञ्जन के विवारों से प्रसन्न था । ज्यों ही वन में प्रविष्ट होता है त्यों ही उसे एक विचित्र पुरुष के रूप में श्रोपाल महाराजा दृष्टिगत हुआ । उसका शरीर विपरीत द्वितीय अवस्था को