Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
View full book text
________________
१३०]
[श्रीपाल चरित्र द्वितीय परिच्वेद अन्वयार्थ---(चामरादि) चमर, छत्र, सिंहासनादि (विभूतिभिः) वैभव के साथ (दिव्याभरण) सुन्दर आभरण (वस्त्राणि) अनेक प्रकार के वस्त्र (स्वर्ण माणिक्य) सुवर्ण, माणिकादि नवरत्नों का (संचयम् ) समूह (उच्चः) अनेकों वैभव (च) और (माताम्) सैकड़ों (दास-दासी) सेवक सेविकाएँ । तथा--
बदातिस्म तदा राजा राजचिन्हानि भूरिशः ।
श्रीपालाय महोत्तुङ्ग मातङ्गतुरगादिभिः ॥१३४।।
अन्वयार्थ (तदा) तव (राजा) राजा ने (महा) बहुत (उत्तुङ्ग) ऊँचे (मातङ्ग) हाथी (तुरंग) धोड़ (आदिभिः) आदि के साथ-साथ (भूरिश.) बहुत से (राजचिन्हानि) राजचिन्ह (श्रीपालाय) श्रीपाल जंवाई के लिए (ददाति स्म) दिये ।।
भावार्थ--राजाने अर्थात् मैनासुन्दरी के पिता ने श्रीपाल जंवाई के लिए समस्त राजचिन्ह भेंट किये । विशाल-विशाल अनेकों गज दिये । तीव्र वेगशाली अश्व प्रदान किये । और भी जो जो सामग्री व्यावहारिक जीवन में आवश्यक होती हैं वे सभी पदार्थ दहेज में दिये ।।१३४।।
श्रीपालाऽपि तदा प्राप्त सम्पदासार सञ्चयः ।
स्व प्रासावे तया सार्द्ध संस्थितस्सपरिच्छवः ॥१३॥
अन्वयार्थ--(सम्पदासार) सारभूत सम्पत्ति का (सञ्चय:) समूह (प्राप्तः) प्राप्त करने वाला (श्रीपालोऽपि) श्रीपाल कोटीभर भी (तदा) तव (तया) उस मदन सुन्दरी राजकुमारी के (सार्द्धम्) साथ (सपरिच्छदः) परिकर सहित (स्व) अपने (प्रासादे) महल में (संस्थितः) रहने लगा।
मावार्थ-विवाह उत्साह-अनुत्साह के मध्य हो गया। श्रीपाल को वर दक्षिणा में अनेकों सम्पदाएँ प्राप्त हुयीं । सभी सम्पत्तियों का सार वह अनुपम सुन्दरी, गुणागार, पतिभक्ता पत्नि थी। उसके साथ सूख से ससुर से प्राप्त अपने राजभवन में स्थित हना। सभी परिकर भी यथायोग्य, यथास्थान उसकी सेवा में रत हुए । सात सो मित्र उसी के अनुरूप थे अत: उसका राजत्व स्वीकार कर सेवा में तत्पर हुए।
कुष्ठिनोऽपि पृथक् सर्वेपरे भूरिगृहेषु च ।
श्रीपालं तं समाश्रित्य तस्थुस्सेवा विधायिनः ॥१३६।। अन्वयार्थ-(परे) अन्य (सर्वे) सभी (कुष्ठिनः) कोढी जन (अपि) भी (भूरिगृहेषु) अनेकों गृहों में (तं) उस (श्रीपालम्) श्रीपाल को (समाश्रित्य) आश्रय करके (च) और (सेवाविधायिनः) सेवा तत्पर हो (तस्थु) रहने लगे।