Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीपान चरित्र द्वितीय परिच्छेद
गोमहिष्यादयो यत्र भुक्त्वास्वादुरसांस्तृणान् ।
सुखं स्थिताः विभान्तिस्म मही नन्दनाभुवाः ।।७।।
अन्वयार्थ---(यत्र) जहाँ उस देश में (गोमहिष्यादयो) गाय-भैसें (स्वादुरसांस्तुणान) स्वादिष्ट घास को (भुक्त्वा) खाकर (सुखं) सुख पूर्वक (स्थिताः) बैठी हैं (बा) ऐसा प्रतीत होता हैं, मानों (मही) पृथ्वी (प्रानन्दनाभुवाः) प्रानन्द के अङ्करों से उल्लसित रोमाचों से (विभान्तिस्म) शोभायमान हो रही थी।
सरला ....उस अवन्ति देश में गाय, भैंस आदि सुस्वादिष्ट घास चरकर सुख से प्रासोन थीं । बडी थीं । चारों ओर भूमि तनांकरों से हरित हो रही थी । वह ऐसी प्रतीत हो रहीं थी मानों हर्ष के रोमाःच ही निकल रहे थे । अानन्द के अकुरों से ही भानों पुलकित शोभ रही थीं।
भावार्थ-उस अवन्ति देश में निरन्तर हरा भरा वातावरण रहता था । जंगल में चारों और हरियाली लहराती थी मानों आनन्दांकुरों को हो भूमि ने धारण किया है । उस मुस्वादु घास को चर कर गाएँ-भंस आदि सुखानुभव कर रही थीं । आनन्द से खाकर सुख पूर्वक बैठी थीं । चारों ओर आनन्दाना से भूमि शोभायमान प्रतीत होतो थी।
धनर्धान्यभवेन्नित्यं संभतो यो वमौ सदा ।
भन्यानां सर्व सौख्याना माकरो वा जगद्धितः ।।८।। अन्वयार्थ – (यो) जो अवन्ति देश (सदा) हमेणा-सदा (धनान्यः) धन-पशुओं और गेहूँ आदि धान्यों के द्वारा (नित्यं) निरन्तर (संभूतः) भरा हुआ (वभौ) शोभित था (वा) मानों (जगद्धितः) संसार का हित करने वाले (भव्यानां) भव्य जीवों का (सर्व) सर्व प्रकार (सौख्यानां) सुखों का (प्राकर बा) खजाना हो हो ।
सरलार्थ—उस देश में (अवन्ति में) धन चौपाये और धान्यै-नव धान्य की प्रस्त उत्पत्ति होती थी । वह निरन्तर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता था । सतत भव्य जोब सुन्न पूर्वक निवास करते थे। उस धन धान्य सम्पदा से ऐसा प्रतीत होता था, मानों संसार का हित करने बाला सूख यहीं श्रा बसा है। अभिप्राय यह है कि वहाँ पुण्यात्मा भव्य जोव ही उत्पन्न होते थे । उन्होने अपने पुण्य से भूमि देश को भी पुण्यरूप बना दिया था। समस्त सुखी इन्द्रियों को प्रिय उत्तम भोगों को सामग्री का वह खजाना स्वरूप था।
यत्र क्षेत्रेषु निष्पन्नास्सर्वधान्येषु गोपिकाः।
रूपेण मोहयन्तिस्म पान्थानन्यासु का कथा ।।६।। अन्वयार्थ - (यत्र) जहाँ (निष्पन्ना) पके हुए (सर्वधान्येषु) सर्व प्रकार के धान्यों से भरे (क्षेत्रेषु। खेतों में (गोपिकाः) कार्यरत ग्वालिने-कृषक पलियां (रूपेण) सौन्दर्य प्रदर्शन