Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti
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[श्रीशन चरित्र द्वितीय परिच्छेद नी सोमदेव आनार्य ने मतानुसार पाँच उदम्बर १. बढ़ २. पीपल ३. ऊमर ४. कम्बर और ५. पाकर इन पाँच प्रकार के फलों वा त्याग तथा ६. मद्य ७. मांस और ६. मधु का त्याग करना पाठ मूलगुण कहे हैं । प्राचार्य जिलरोन स्वामी ने ५ यण व्रता के साथ ६. धूत (जुना मलने) का त्याग ७. मद्य पीने का त्याग और ८. मांस खाने का त्याग इस प्रकार ८ मुलगुग
श्री पं० आजाधरजी ने (१) गद्य-शराव का त्याग (२) मांस भक्षण त्याग (३) महद का स्यांग (४) माभन त्याग (५) पॉचों उदुम्बरों का त्याग (६) पञ्च पर मेष्ठियों को नमस्कार बारना (७) जीव दया पालन करना (८) जल छान के पीना । इम प्रकार ये धावक के ८ मूलगुण हैं । ।।६।।
इति श्रुत्वा जिनेन्द्रोक्तं धर्ममुनिमुखाम्बुजात् ।
शास्त्राभ्यासं चकारोच्चरतत् समीपे जगद्धितम् ॥६४॥ अन्वयार्थ - (इति) इस प्रकार (जिनेन्द्रोक्त) जिन भगवान् प्रगीत (धर्म) धर्म को (मुनिमुखाम्बुजान्) मुनिराज के मुख से (श्रुत्वा) श्रवण कर (तत्समीपे) उन मुनिराज के समीप (जगद्धितम् ) संसार का हित करने बाले (उच्चैः) विशेष रूप से (शास्त्राभ्यास) विशिष्ट शास्त्रों का अध्ययन (चकार:) किया।
भावार्थ ...उपर्युक्त प्रकार थावत्र धर्भ श्रवणकार मदनसुन्दरी को परमानन्द हुमा । श्रीगुरु मुस्खाम्भोज से सर्वज्ञ प्रणोत आगम को भुनिराज के पास पला विशेष-विशेष प्राध्यात्मिक, तत्वनिस्पक पार्षग्रन्थों का तलस्पर्णी अध्ययन किया ।।४।।
सर्वशास्त्रमुखप्रायं पूर्व व्याकरणं शुभम् । छन्दोऽलङ्कारमप्युच्चैरभिधानं निधानवत् ॥६५।। नाना काव्यानि भव्यानिपठतिस्मनिराला ।
षद्रव्यसंग्रहं सप्ततत्स्वानां विस्तरं तथा ॥६६॥
अन्वयार्थ : (निराकुला) शान्तचित्ता उस कन्या ने (पूर्वम् } सर्वप्रथम (सर्वशास्त्र मुखप्रायम् ) समस्त जिनवाणी व आगम के मुख प्रवेश द्वार रूप (शुभम्) धेष्ठ (व्याकरणम्) व्याकरण ग्रन्थ को (उन्च:) अत्यन्त (अभिधानी ध्यान पूर्वका (निधानवत) निधि के समान पुनः (छन्दः अलङ्कारम्) छन्द शास्त्र, अलङ्कार, शास्त्रों को (अपि) भी (तथा) एवं (नाना) बहुत से (भव्यानि) श्रेष्ठ (काव्यानि) काव्य ग्रन्थों को (सप्ततत्वानांविस्तरम् ) सातों तत्त्वों का विस्तार पूर्वक (पठतिस्म) अध्ययन किया था।
भावार्थ- - उसने सर्वप्रथम श्रेष्ठ व्याकरण णास्त्र का अध्ययन किया । व्याकरण, शब्द वाडमय में प्रवेश करने के लिए मुख द्वार के समान है। व्याकरण ज्ञान होने पर समस्त