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मारवाड़ का इतिहास
जोधपुर के राष्ट्रकूट (राठोड़ ) नरेशों का कलाकौशल-प्रेम।
इन नरेशों का कला-कौशल की उन्नति पर भी विशेष ध्यान रहा है। इसका प्रमाण जोधपुर के सुन्दर और सुदृढ किले को, जिसकी स्थापना राव जोधाजी ने वि० सं० १५१६ (ई० स० १४५१ ) में की थी, देखने से आपही आप मिल जाता है । इस में जोधाजी के और उनके बाद होने वाले उनके उत्तराधिकारियों के बनावाए अनेक सुन्दर महल आदि विद्यमान हैं।
जोधपुर नगर की शहरपनाह पहले पहल राव मालदेवजी ने बनवाई थी। परन्तु महाराजा बखतसिंजी ने शहर के घेरे के बढ़ जाने से इसका विस्तार किया । इसके अलावा मारवाड़ राज्य के वैभव की उत्तरोत्तर वृद्धि और उसके साथ साथ यहां के नरेशों की क्रमश: बढ़ती हुई कला-कौशल की अभिरुचि का प्रमाण यहां के कुछ राजाओं पर बने मंडोर के देवल (Cenotaphs.) हैं । इनको देखने से अनुमान होता है कि जिस प्रकार राव मालदेवजी, राजा उदयसिंहजी, सवाई राजा शूरसिंहजी, राजा गजसिंहजी, महाराजा जसवन्तसिंहजी और महाराजा अजितसिंहजी के समय मारवाड़ राज्य की उत्तरोत्तर उन्नति होती गई, उसी प्रकार उनके नाम पर बने देवलों ( Cenotaphs ) के आकार और उनकी स्थापत्य कला में भी वृद्धि होती गई ।
इनके अलावा महाराजा अजितसिंहजी के समय का बना मंडोर का एक-यंभिया महल, पहाड़ काटकर बनवाई वीरों आदि की मूर्तियों और उनके उत्तराधिकारी महाराजा अभयसिंहजी के समय पहाड़ काट कर तैयार की गई देवताओं आदि की मूर्तियों भी विक्रम की अठारहवीं शताब्दी की मारवाड़ की स्थापत्य-कला के अच्छे नमूने हैं । १. कहते हैं कि किले पर का प्रसिद्ध मोतीमहल सवाई राजा शूरसिंहजी ने, फतैमहल
और दौलतखाना महाराजा अजितसिंहजी ने और फूलमहल महाराजा अभयसिंहजी ने बनवाया था। इसी प्रकार शृङ्गार चौकी, जिस पर नवीन महाराजाओं का राज-तिलक
होता है, महाराजा विजयसिंहजी ने बनवाई थी। २. इस समय इन मूर्तियों पर चूने की कली की हुई होने से इनकी असली कारीगरी नहीं
देखी जासकती।
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