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महाराजा विजयसिंहजी से पासा पलट गया । मौका पाते ही मरहटों ने एकाएक उस तोपखाने पर हमला कर दिया । यह देख यद्यपि राठोड़-सरदारों ने प्राण देकर भी मान की रक्षा करने का बहुत कुछ प्रयत्न किया, तथापि उनकी सेना का व्यूह भंग हो जाने से बहुत से राठोड़सरदार वीरगति को प्राप्त हुए और मैदान जयापा के हाथ रहा । इसके बाद सायंकाल हो जाने से महाराज अपने बचे हुए सरदारों आदि को साथ लेकर मेड़ते लौट गए
और रात्रि के पिछले पहर में ही वहां से नागोर की तरफ चल दिए । इसी समय बीकानेर और किशनगढ़ के नरेशों को भी अपने-अपने देशों की रक्षार्थ लौट जाना पड़ा।
मेड़ते के पास की उपर्युक्त विजय के बाद जयापा ने अपनी और रामसिंहजी की सेना के चार भाग किए । इनमें के मुख्य भाग ने जयापा की आधीनता में नागोर पर घेरा लगाया और अन्य तीनों भागों ने जोधपुर, जालोर और फलोदी पर
आक्रमण किया । परन्तु जोधपुर में वहां के दुर्ग-रक्षक चांपावत सूरतसिंह और नगररक्षक डेवढ़ीदार सोभावत गोयंददास आदि ने उनको सफल न होने दिया । इसी प्रकार जालोर में भी भंडारी पोमसिंह के आगे उनकी एक न चली ।
यद्यपि नागोर में स्वयं महाराज ने भी बड़ी वीरता से जयापा का सामना किया, तथापि किले के शत्रु-सैन्य के बीच घिर जाने के कारण कुछ दिनों में वहाँ की रसद
कर्नल टॉड ने लिखा है कि राठोड़-सैनिकों ने अपने ही वीरों पर, जो मरहटों को हरा कर लौट रहे थे, भ्रम से गोलाबारी शुरू करदी । इससे उनकी विजय पराजय में बदल गई । (ऐनाल्स ऐण्ड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा॰ २, पृ० १६१-१६२)। १. 'अजमेर' नामक इतिहास में लिखा है कि सिंधिया मैदान छोड़ कर भागने ही वाला था,
परन्तु इसी बीच किशनगढ़-राज्य के दावेदार सरदारसिंहजी ने महाराजा विजयसिंहजी के मारे जाने की झूठी अफवाह फैलादी । इससे हतोत्साह होकर राठोड़-सैनिक मैदान से हट गए और महाराज को, मौका हाथ से निकल जाने के कारण, लाचार होकर
नागोर का आश्रय लेना पड़ा। देखो पृ० १७०)। कर्नल टॉड ने भी इस घटना का उल्लेख किया है (ऐनाल्स ऐण्ड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भाग २ पृ० १०६२-१०६३ )। २. 'तवारीख राज श्री बीकानेर' में किशनगढ़ नरेश का मेड़ते से ही अपने राज्य की तरफ लौट
जाना लिखा है ( देखो पृ० १८२ )। परंतु बीकानेर का मार्ग नागोर की तरफ से होने
के कारण बीकानेर महाराज वहां तक महाराजा विजयसिंहजी के साथ गए होंगे। ३. यह हरसोलाव का ठाकुर था।
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