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महाराजा विजयसिंहजी इस घटना की सूचना मिलने पर उक्त सरदारों के बन्धुओं, सम्बन्धियों और मित्रों ने एकत्रित हो मारवाड़ में उपद्रव करने का आयोजन किया । यह देख पायभाई जगन्नाथ, विदेशी सैनिकों और छोटे-छोटे जागीरदारों को लेकर, उनको दबाने के लिये चला । साथ ही रायपुर-ठाकुर भाकरसिंह की मातहती में एक सेना नींबाज की तरफ़ रवाना की गई । इसी बीच सूचना मिली कि मेड़ते में इस समय शत्रु-सैन्य की संख्या बहुत कम रह गई है और रामसिंहजी हरसोर में है । परन्तु उपद्रवियों का विचार उन्हें शीघ्र ही मेड़ते ले आने का है । इस पर नींबाज की तरफ़ भेजी गई सेना को शीघ्र ही मेड़ते पहुँच उस पर अधिकार करने की आज्ञा दी गई । इसी के अनुसार उस सेना ने दूसरे दिन प्रातःकाल होने के साथ ही मेड़ते पर अधिकार कर लिया और शीघ्र ही सहायक सेना और रसद का प्रबन्ध कर वहाँ के मोरचे सुदृढ़ कर लिए।
मेड़ते के इस प्रकार एकाएक हाथ से निकल जाने की खबर मिलते ही रामसिंहजी ने एक बड़ी सेना के साथ आकर उक्त नगर को घेर लिया । यद्यपि कुछ दिनों बाद नगर में पानी की कमी होजाने के कारण अन्दर वालों को मेड़ते की रक्षा करना कठिन प्रतीत होने लगा, तथापि उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और वे बड़ी वीरता के साथ शत्रुओं के आक्रमणों को रोकते रहे ।
इसी बीच, इधर बारिश हो जाने से पानी का कष्ट दूर हो गया और उधर मेड़ते वालों के घिर जाने की सूचना पाकर जगन्नाथ, बागियों के मुखिया चापावतों की सेना को जालोर की तरफ़ भगाकर, वहां आ पहुँचा । उसके दलबल सहित उधर आने की सूचना मिलते ही रामसिंहजी मेड़ते पर का घिराव हटाकर परबतसर की तरफ़ चले गए । जगन्नाथ ने वहां भी उनका पिछा किया । इस पर रामसिंहजी तो रूपनगर की तरफ़ चले गए और उनके साथ के सरदारों में से कुछ जगन्नाथ के पास चले आए और कुछ अपनी-अपनी जागीरों में लौट गए । इस प्रकार जो सरदार जगन्नाथ के पास चले आए थे उनकी जागीरों में महाराज की तरफ़ से वृद्धि की गई । इसके बाद राजकीय सेना ने फिर बचे हुए बागियों का पीछा किया । बीलाड़ा, सोजत आदि १. ख्यातों में लिखा है कि इसके बाद रामसिंहजी जयपुर चले गए। उनके कुछ दिन वहां
रहने पर जयपुर-नरेश ने सांभर का अपना हिस्सा उनको खर्च के लिए दे दिया। २. ख्यातों में लिखा है कि चांपावत सबलसिंह आदि सरदारों ने बहुतसी सेना इकट्ठी कर
बीलाड़े पर चढ़ाई की । यह देख वहां का हाकिम आगे बढ़ उनके मुकाबले को पाया ।
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