Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

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Page 491
________________ मारवाड़ का इतिहास केसरीसिंह के बागी होजाने पर उसकी जागीर रायपुर पर महाराज ने कब्जा कर लिया और कुछ ही दिनों में अजमेर पर भी इनका बहुत कुछ दखल हो गया। वि० सं० १८३७ ( ई० स० १७८० ) में उमरकोट (सिंध ) के टालपुरों ने मारवाड़ की सरहद पर उपद्रव उठाया और वे पौकरन आदि पर अधिकार करने का इरादा करने लगे । इस पर महाराज ने मांडणोत हरनाथसिंह, पातावत मोहकमसिंह, बारठ जोगीदास और सेवग थानू को अपना प्रतिनिधि बनाकर उनके पास चौबारी भेजा। जब मामला सुलझता हुआ नहीं देखा, तब इनमें से पहले तीन पुरुषों ने मिल कर उनके सरदार बीजड़ को धोके से मारडाला। इस पर उसके अनुचरों ने उन तीनों को मार अपने स्वामी का बदला लिया । इसकी सूचना मिलने पर महाराज ने इन तीनों के पुत्रों को क्रमश: अलाय, करण और रिनिया नामक गांव जागीर में दिए । इसके बाद बीजड़ के भाई-बन्धुओं ने अपने नेता का बदला लेने के लिये फिर से मारवाड़ की सरहद पर उपद्रव शुरू किया। इस पर महाराज ने उनको दण्ड देने के लिये एक सेना रवाना की । इस राठोड़-वाहिनी ने टालपुरों को हराकर उमरकोट पर ही अधिकार कर लिया । यह घटना वि० सं० १८३६ (ई० स० १७०२) १. वि० सं० १८३६ ( ई० स० १७७६ ) में महाराज ने प्रसन्न होकर रायपुर की जागीर केसरीसिंह के पुत्र फतेसिंह को लौटा दी थी। २. मारवाड़ की ख्यातों में टालपुरों का सोढ़ा राजपूतों से उमरकोट छीनना लिखा है ? ३. सेवग थानू को इन तीनों ने पहले ही वहाँ से गिराब की तरफ भेज दिया था, क्योंकि वह ब्राह्मण था । ४. ख्यातों के अनुसार उमरकोट पर जोधपुर नरेशों का यह अधिकार वि० सं० १८६६ (ई. स० १८१२ ) तक रहा था । उमरकोट पर अधिकार करने में पौकरन के ठाकुर सवाई. सिंह ने बड़ी वीरता दिखलाई थी। इससे प्रसन्न होकर वि० सं० १८३६ (ई० स० १७८२ ) में महाराज ने उसे प्रधान का पद और साथ ही उस कार्य के वेतन स्वरूप (बधारे में ) मजल और दूनाड़ा नामक गांव दिए । मिरज़ा कलिचबेग फ्रेदूनबेग की लिखी 'हिस्ट्री ऑफ सिंघ' के, द्वितीय भाग में, उमरकोट के विषय में लिखा है: जिस समय सिंघ के शासक मियाँ अब्दुन्नबी ( कल्होरा ) के राज्य में मीर बीजड़ का प्रताप बहुत बढ़ा हुआ था, उस समय जोधपुर नरेश के दो राठोड़-प्रतिनिधियों ने सिंध पहुँच, उसके साथ गुप्त परामर्श करने के बहाने से, उसे (बीजड़ को) मार डाला । परंतु मरने के पूर्व पाहत बीजड़ ने अपनी ३८४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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