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महाराजा विजयसिंहजी तलवार से उन दोनों राजपूतों को, मय उनके दो अनुचरों के, वहीं समाप्त कर दिया। यह घटना हि० स. १९६४ ( ई० स० १७८१ ? ) की है ।
कुछ लोगों का अनुमान है कि यह कार्य मियाँ अब्दुन्नबी की प्रार्थना पर ही किया गया था। इसीसे उसने, इस कार्य की एवज़ में, उमरकोट का अधिकार जोधपुर नरेश को सौंप दिया। परंतु इसके बाद ही उसे ( मियाँ अब्दुन्नबी को ) बीजड़ के पुत्र मीर अब्दुल्लाखाँ के भय से कलात की तरफ भागना पड़ा और उसी समय उसने अपने पुत्र को जोधपुर नरेश के पास भेज दिया ।
कुछ दिन बाद पूर्व की तरफ से महाराजा विजयसिंह की सेना ने और उत्तर की तरफ से कलात की सेना ने सिंध पर चढ़ाई की। इसकी सूचना मिलते ही मीर अब्दुल्लाखाँ ने पहले जोधपुर की सेना का मुकाबला करने के लिये प्रयाण किया । मार्ग में रेगिस्तान को पार कर आगे बढ़ते ही, उसे एक पहाड़ीगढ़ी में एक सौ राजपूत सरदार और ठाकुर दिखाई दिए। उनका मुखिया विजयसिंह का पुत्र और दामाद था; और उन सरदारों के अनुयायी पास की समतल भूमि पर ठहरे हुए थे। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध होने पर विजय अब्दुल्ला के पक्ष में रही और राजपूतों का बहुत सा माल असबाब भी उसके हाथ लगी ।
इसके कुछ काल बाद मीर अब्दुल्ला के मियाँ अब्दुन्नबी द्वारा धोके से मरवाए जाने पर मीर फ़तैअलीखाँ बल्लोचों का मुखिया चुना गया ।
आगे उक्त इतिहास में लिखा है कि मियाँ अब्दुन्नबी ने कुछ रुपया लेकर, इसके बहुत पहले ही, ख़ानगी तौर पर, उमरकोट जोधपुर के राजा विजयसिंह को सौंप दिया था । ( परंतु 'फ्रेरे नामा' का लेखक मीर बीजड़ को मारने की एवज़ में उमरकोट का दिया जाना लिखता है । ) इसीसे उक्त राजा ने वहां के किले में अपनी कुछ फ़ौज रख छोड़ी थी । परंतु जब उसे ( राजा की फ़ौज को ) मीर के ( हि० स० ११६६= ई० स० १७८२ में ) मियां अब्दुन्नबी पर विजय पाने का समाचार मिला, तब उसने शत्रु (मीर ) उस दुर्ग की रक्षा के लिये रसद और नई सेना भेजने के लिये अपने राजा को लिखा । इस पर राजा ने भी शीघ्र ही सामान से लदे १०० ऊंट और २,००० सैनिक उमरकोट की तरफ रवाना किए। मार्ग में उनमें के तीन सौ सैनिकों का सामना ( मीर सुहराबखों के बन्धु) मीर गुलाम मुहम्मद से, जो शिकार को निकला था, होगया। युद्ध होने पर करीब एक सौ राजपूत मारे गए और बचे हुए पीछे आती हुई अपनी सेना की तरफ लौट चले । बल्लोचों ने, जिनको पीछे आने वाली राजपूत-सेना का पता न था, इनका पीछा किया । परंतु कुछ ही देर में वे (बल्लोच ), उस विशाल राठोड़-वाहिनी के बीच घिर कर मारे गए । यह घटना हि० स० १२०१ ( ई० स० १७८६) की है ? इसकी सूचना मिलते ही मीर सुहराब ने मीर अली की सहायता से, राजपूतों का पीछा किया और उनके लौटकर अपने मुल्क में पहुंच जाने पर भी उनमें के बहुत से योद्धाओं को मार, उनके और मंदिरों को गिरा कर बदला लिया। इसके बाद बल्लोच अपने देश को लौट गए। मुल्क को लूट
(१) हिस्ट्री ऑफ सिंध, भाग २, पृ० १७८ - १८३ ।
(२) हिस्ट्री ऑफ सिंध, भाग २, पृ० १६३ ।
(३) यह मीर चाकर का, जो खैरपुर के मीरों का पूर्वज था, पुत्र था । हिस्ट्री ऑफ सिंध,
भाग २, पृ० १७१ ।
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