Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 506
________________ महाराजा भीमसिंहजी इस प्रकार मारवाड़ में शान्ति हो जाने पर महाराजा भीमसिंहजी ने अपने पक्ष के सरदारों आदि को, जिन्होंने इन्हें फँवर के युद्ध और जोधपुर की गद्दी प्राप्त करने में सहायता दी थी, यथोचित पुरस्कार (जागीरें आदि) देकर अपनी प्रसन्नता प्रकट की। ___अगले वर्ष ( वि० सं० १८५१ ई० स० १७६४ में ) मरहटों ने (लखबा की अधीनता में ) मारवाड़ पर चढ़ाई की' । परन्तु महाराज ने भीतरी उपद्रव को दबाए रखने के विचार से उन्हें सेना के खर्च के लिये कुछ रुपये देकर लौटा दियो । अपनी अनुपस्थिति में जालिमसिंह और मानसिंहजी के राज्य पर अधिकार करने का उद्योग करने के कारण यह उनसे अप्रसन्न होगए थे । इसीसे वि० सं० १८५३ (ई० स० १७९६) में इन्होंने अपने चचा जालिमसिंह से गोडवाड़ छीन लिया । परन्तु इनके चचेरे भाई मानसिंहजी, जालोर-दुर्ग का आश्रय मिल जाने से, अपनी स्थिति को सम्हाले रहे । यह देख, वि० सं० १८५४ ( ई० स० १७९७ ) में, इन्होंने सिंघी अखैराज को जालोर पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी । यद्यपि उसने जाकर जालोर के आस-पास के प्रदेश पर अधिकार करलिया, तथापि किला और नगर उसके हाथ न सका । __इसी वर्ष जालिमसिंह ने, उदयपुर की सहायता प्राप्त कर, मारवाड़ पर चढ़ाई की । परन्तु महाराजा की आज्ञा से सिंघी बनराज ने उसे काछबली की घाटी में रोक दिया । वहीं पर वि० सं० १८५५ (ई० सन् १७९८) में जालिमसिंह का स्वर्गवास हुआ । इससे उधर का सारा झगड़ा अपने आप शान्त हो गया । १. ख्यातों से ज्ञात होता है कि पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने अपनी की हुई सेवा के उपलक्ष्य में फलोदी का प्रान्त जागीर में चाहा था और महाराजा भीमसिंहजी ने उसकी यह प्रार्थना स्वीकार भी करली थी; परन्तु सिंघी जोधराज के, सरदारों को परगना जागीर में देने का, विरोध करने से यह कार्य न हो सका । इससे उक्त ठाकुर अप्रसन्न हो गया और उसने तीर्थ-यात्रा के बहाने दिल्ली पहुँच लखबा को जोधपुर पर चढ़ाई करने के लिये तैयार किया । २. वि० सं० १८५२ के चैत्र ( ई० स० १७६६ के अप्रेल ) में महाराज ने सिंध के भूतपूर्व शासक मियां अब्दुन्नबी के तृतीय पुत्र फज़लअलीखाँ को निर्वाह के लिये जागीर दी | ३. इसी ने वि० सं० १८५७ ( ई० स० १८०० ) में जोधपुर के पास का अखैसागर (अखैराजजी का ) तालाब बनवाया था । ४. यह प्रान्त महाराजा विजयसिंहजी की तरफ से मानसिंहजी को जागीर में दिया गया था। ५. यह उदयपुर महाराना जगत्सिंहजी का दौहित्र था। ६. किसी-किसी ख्यात में इसका मेवाड़ में मरना लिखा है । ३६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516