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महाराजा विजयसिंहजी महाराजा परम वैष्णव थे और इन्होंने वि० सं० १८१७ ( ई० स० १७६० ) में जोधपुर नगर में गं' श्यामजी का विशाल मंदिर बनवाया था ।
महाराजा विजयसिंहजी ने ही पहले-पहल वि० सं० १८२२ ( ई० स० १७६५ ) में मारवाड़ में अपने नाम का चांदी का रुपया चलाया था । यह 'विजयशाही' रुपये के नाम से प्रसिद्ध था और वि० सं० १९५७ ( ई० स० १६०० ) तक प्रचलित हो ।
'मासिरुल उमरा' के लेखक ने महाराज के विषय में लिखा है:
“उस ( बखतसिंह ) के मरने पर उसका लड़का विजयसिंह अब तक ( मारवाड़ पर ) काबिज है । यह राजा रियाया -परवरी, अधीन होने वालों की परवरिश और सरकशों की सर-शिकनी में मशहूर हैं ।"
वि० सं० १८३२ की सावन सुदि ११ ( ई० स० १७७५ की ७ अगस्त= हिजरी सन् १९८१ की ६ जमादिउस्सानी ) की एक शाही सनद से ज्ञात होता है। कि दिल्ली के पास का रायसिना नामक गाँव, जहाँ पर इस समय नई दिल्ली बसी है, जोधपुर-नरेशों की परंपरागत जागीर में था । यद्यपि बीच में जोधपुर के गृहकलह के कारण वह जब्त होगया था, तथापि उसके शान्त होने पर उपर्युक्त तिथि को फिर से महाराजा विजयसिंहजी को दे दिया गया था ।
१. यद्यपि कर्नल टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास में लिखा है कि अजित सिंह ने अपने नाम के सिक्के चलाए थे ( ऐनाल्स ऐन्ड एन्टिक्विटीज़ ऑफ राजस्थान ( क्रुक संपादित ), भा० २, पृ० १०२६ ) परंतु उनका अब तक कुछ भी पता नहीं चला है ।
२. इसी वर्ष से मारवाड़ में बिजैशाही रुपये की एवज़ में भारत सरकार के रुपये का चलन
हुआ था।
३. मासिकल उमरा, भा० ३, पृ० ७५६ |
४. क्षत्रिय अन्वेषक पत्रिका, अंक १, (अप्रैल १६३०), पृ० ४ १४ और जर्नल रायल एशियाटिक सोसाइटी, लंदन, ( जुलाई १९३१), पृ० ५१५-५२५ ।
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