________________
मारवाड़ का इतिहास अनेक स्थानों पर दोनों पक्षों के बीच कई युद्ध हुए । अन्त में चांपावतों की सेना को सोजत से भागकर घाटे (पहाड़ों) की तरफ़ जाना पड़ा । इससे डरकर कई अन्य ठाकुर भी महाराज के झंडे के नीचे आ गए और महाराज ने भी उन्हें जागीरें आदि देकर शांत कर दिया । इसी बीच महाराज के एक सेनापति पंचोली रामकरण ने जालोर से शत्रुओं को भगाकर वहां पर भी अधिकार कर लिया ।
वि० सं० १८१८ ( ई० स० १७६१ ) में जोशी बालू ने राजकीय-सेना को लेकर इधर-उधर के बागी जागीरदारों को दबाया और उनसे दण्ड के रुपये वसूल किए। वि० सं० १८१६ ( ई० स० १७६२ ) में उसने अजमेर पहुँच उसे घेर लिया । परंतु महादजी (माधोजी) सिंधिया के समय पर वहां पहुँच जाने के कारण उसे लौट कर मेड़ते आ जाना पड़ा । अन्त में फिर सिंधिया को नौलाख रुपये मिल जाने से उसने महाराज से संघि कर ली। ___ कुछ दिन बाद बागियों ने, घाटे से रायपुर की तरफ़ लौट कर, मारवाड़ में फिर लूट-खसोट शुरू की । इस पर जगन्नाथ ने पहले उनके मुखिया चांपावत सरदार की जागीर 'पाली' पर चढ़ाई कर उस पर अधिकार कर लिया, और फिर रायपुर, भखरी, गूलर, आदि की तरफ़ जाकर बागी सरदारों का दमन किया। इससे मारवाड़ का उपद्रव बहुत कुछ शान्त हो गया ।
जगन्नाथ के वीरता-पूर्ण कार्यों से महाराजा बहुत ही प्रसन्न थे और इसी से राज्य में उसका बड़ा मान था। परंतु अन्त में जोशी बालू के उसकी फ़जूल खर्ची की शिकायत करने से महाराजा उस (जगन्नाथ) से अप्रसन्न हो गए। इससे उसके मान और प्रभाव को बड़ा धक्का पहुंचा।
युद्ध होने पर उक्त हाकिम मारा गया और सबलसिंह के भी कई घाव लगे | इसके बाद सबलसिंह और उसका भाई श्यामसिंह बीलाड़े पहुँचे । परंतु वहां पर मुंह से कुछ अनुचित शब्द निकालने के कारण सबलसिंह धूपावत राजपूतों के हाथ से सख्त घायल हुआ और खारिया नामक गांव में पहुँचने पर उसका देहान्त हो गया । किसी किसी ख्यात में सबलसिंह का
चांदेलाव ठाकुर मोहनसिंह के हाथ से मारा जाना लिखा है। १. ख्यातों में लिखा है कि उसने मेड़ते के एक व्यापारी की लड़की को अपनी उपपत्नी बना
लिया था और उसको प्रसन्न रखने के लिये राजकीय-द्रव्य का बहुत सा भाग खर्च कर
दिया करता था। २. इसी अपमान से वि० सं० १८२१ के सावन (ई. सन् १७६४ के अगस्त ) में जगन्नाथ
का देहान्त हो गया।
३८०
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com