Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

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Page 484
________________ महाराजा विजयसिंहजी और सरदार लोग स्वाधीन होने की कोशिश करने लगे । वि० सं० १८१४ फागुन ( ई० सन् १७५८ के मार्च ) में जब इन झगड़ों से निपट कर महाराज फिर जोधपुर लौटे, तब पौकरन-ठाकुर देवीसिंह आदि सरदार बिना इनकी आज्ञा प्राप्त किए ही अपनी-अपनी जागीरों में जा बैठे और महाराज के बुलाने पर भी आने में बहाने करने लगे । अगले वर्ष छोटी खाटू के ठाकुर जोधा जालिम सिंह ने, मेगरासर ( बीकानेर राज्य में) के हटीसिंह ने, डीडवाने की तरफ़ के शेखावतों ने और नागोर के पश्चिम में स्थित करमसोतों ने आस-पास के गाँवों को लूट कर नागोर प्रान्त में उपद्रव शुरू किया । परन्तु महाराज के कृपा-पात्र जगन्नाथ ने जाकर उसे बड़ी वीरता से दबा दिया । इन्हीं दिनों नींबाज-ठाकुर कल्याणसिंह का स्वर्गवास हो गया और रास-ठाकुर ने, महाराज से बिना अनुमति प्राप्त किए ही, अपने पुत्र दौलतसिंह को उसके गोद बिठा दिया । यद्यपि यह बात महाराज को बुरी लगी, तथापि समय की गति देख इन्हें चुप रह जाना पड़ा । परन्तु इतने पर भी मारवाड़ के सरदार शान्त न हुए और अपनी-अपनी जागीरों में बैठे हुए रामसिंहजी से पत्र व्यवहार करने लगे । इस पर महाराज ने सिंघी फतैचन्द को भेजकर सब सरदारों को जोधपुर में इकट्ठा किया । परन्तु ये लोग नगर के बाहर बखतसागर तालाब के पास डेरे डालकर ठहर गए । यह देख महाराज ने अपने विश्वस्त सेवक जगन्नाथ को उन्हें समझाकर नगर में ले आने १. वि० सं० १८१५ ( ई० स० १७५६ ) में महाराज ने रास के ठाकुर केसरीसिंह को पौकरन के ठाकुर देवीसिंह को समझा कर ले आने के लिए भेजा । परंतु वहां पर में झगड़ा हो जाने से देवीसिंह ने जोधपुर आने से इनकार कर दिया | कर्नल टॉड ने लिखा है कि यह देवीसिंह महाराजा अजित सिंहजी का पुत्र था और पौकरन - ठाकुर ( महासिंह ) ने अपने औरस पुत्र के न होने से इसे गोद लिया था । ( एनाल्स ऐण्ड ऐरिटक्विटीज़ ऑफ राजस्थान, भा० २, पृ० १०६६ ) परंतु यह ठीक नहीं है । देवीसिंह वास्तव में महासिंह का ही पुत्र था । यह देवीसिंह वीर और उद्दण्ड होने के कारण जोधपुर राज्य के अधिकार का अपनी तलवार के पड़े ( परतले) में होना बतलाया करता था । २. यह महाराज को दूध पिलाने वाली धाय का पुत्र था । ३. इस घटना से प्रसन्न होकर महाराज ने नींबाज की जागीर का एक गांव - पीपाड़ देने से इनकार कर दिया। इस से केसरीसिंह नाराज़ हो गया। इसके बाद सब सरदारों ने नींबाज़ में इकट्ठे होकर रामसिंहजी से मिलावट करने का षड्यंत्र शुरू किया । ३७७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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