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मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १८१३ ( ई० सन् १७५६ ) में जिस समय रामसिंहजी जयपुर के स्वर्गवासी नरेश ईश्वरीसिंहजी की कन्या से विवाह करने ( जयपुर ) गए, उस समय मारवाड़ के सरदारों ने, महाराज की अनुमति प्राप्त कर, उनके अधिकृत प्रान्तों पर `चढ़ाई की और मेड़ता, जालोर और सोजत के परगने उनके पक्षवालों से छीन लिए । इसकी सूचना मिलने पर रामसिंहजी ने एकबार फिर मरहटों से सहायता मांगी। इससे जयापा के भाई महादजी ( माधोजी ) को अपने भाई का बदला लेने का अच्छा मौक़ा मिल गया । उसने पेशवा से आज्ञा लेकर मारवाड़ में ऐसी लूट-मार मचाई की बहुत कुछ कोशिश करने पर भी महाराज को सफलता नहीं मिली । अन्त में महाराज को महादजी ( माधोजी) से सन्धि करनी पड़ी। इसके अनुसार रामसिंहजी से छीने हुए परगने तो वापस उन्हें लौटा देने पड़े और डेढ़ लाख रुपया सिंधिया को देना निश्चित हुआ । इसके बाद महादजी ( माधोजी ) अजमेर का प्रबन्ध गोविन्दराव को सौंप दक्षिण को लौट गया । परन्तु इस पराजय से मारवाड़ का प्रबन्ध शिथिल होगया
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इससे उस समय महाराजा विजयसिंहजी के अधिकार में केवल नागोर, डीडवाना, फलोदी और जैतारण के प्रांत ही रह गए थे। महाराज के पक्ष के जिन जागीरदारों की जागीरें रामसिंहजी को दिए गए प्रांतों में थीं उनके खर्च के लिये महाराज को नकद रुपये नियत करने पड़े थे ।
१. ख्यातों में लिखा है कि जिस समय मेड़ते पर चढ़ाई करने का विचार हो रहा था, उस समय पौकरन - ठाकुर देवीसिंह ने महाराज से अर्ज़ की कि मरहटों के और अपने बीच में हुई संधि को कम से कम एक वर्ष तक पालन करने का वचन दिया जा चुका है और उस अवधि के समाप्त होने में अभी ५ महीने बाक़ी हैं, इसलिये जहां तक हो अभी रामसिंहजी को दिए गए प्रांतों पर चढ़ाई न की जाय । परंतु अन्य सरदारों के इस उचित परामर्श का विरोध करने पर वह अप्रसन्न हो गया और गुप्त रूप से मरहटों के साथ सहानुभूति रखने लगा । इससे भी मरहटों को मारवाड़ में लूट मार करने में बहुत कुछ सहायता मिली थी । २. 'अजमेर' नामक इतिहास में लिखा है कि ई० स० १७५६ से १७५८ ( वि० सं० १८१३ से १८१५ ) तक अजमेर ख़ास पर रामसिंहजी और मरहटों दोनों का अधिकार रहा था । इसके अलावा खरवा, मसूदा और भिणाय रामसिंहजी के हिस्से में आए थे और बाकी का सारा प्रांत जयापा के भाई जनकूजी ( ? ) और दत्तूजी के अधिकार में गया था । परंतु ई० स० १७५८ में जिस समय रामसिंहजी जयपुर की तरफ चले गए, उस समय गोविन्दराव ने रामसिंहजी की तरफ के हाकिम को निकालकर अजमेर पर पूरा अधिकार कर लिया । परंतु इस पर जब महाराजा विजयसिंहजी ने रामसिंहजी को दिए गए प्रांतों पर अपना हक प्रकट किया, तब उसने खरवा, मसूदा और भिणाय इन्हें सौंप दिए। इसके बाद महाराज ने टंटोती में अपना थाना कायम किया । ये प्रांत ई० स० १७६१ ( वि० सं० १८४८) तक मारवाड़ के अधिकार में रहे । ( पृ० १७१ ) ।
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