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मारवाड़ का इतिहास सेना के साथ चन्द्रसेनजी के मुकाबले को रवाना किया । इस प्रकार शाही सेना का बल दुगना हो जाने के कारण, अपने सरदारों की सलाह से, चन्द्रसेनजी रामपुरे की तरफ़ से होकर विकट पहाड़ों में घुस गए । इस पर पहले तो शाही सेना ने बड़ी उमंग के साथ इनका पीछा किया । परन्तु अंत में जब सफलता होती न देखी, तो उसे वापस लौटना पड़ा । चन्द्रसेनजी के इस प्रकार बचकर निकल जाने और अपनी सेना के इस प्रकार असफल होने से अकबर को बड़ी निराशा हुई और उसने इसके लिये अपने अमीरों को डाँट-फटकार भी दी।
इसके बाद वि० सं० १६३२ (हि० सन् १८३) में चन्द्रसेनजी को दबाने के लिये जलालखाँ को सिवाने की तरफ जाने की आज्ञा दी गई, और उसके साथ सैयद अहमद, सैयद हाशिम, शिमालखाँ आदि अमीर भी भेजे गए । इतने दिनों से चन्द्रसेनजी का पीछा करते रहने पर भी सफलता न होने से शाही सैनिक हतोत्साह हो गए थे, इससे उनकी हालत और भी खराब हो गई । साथ ही उस पहाड़ी प्रदेश में भटकने और घास-दाने का पूरा प्रबंध न होने के कारण उनके घोड़े भी दुर्बल हो गएं । इसी से बादशाह ने इन्हें वहाँ पहुँच अगली सेना को लौटा देने की आज्ञा भी दी। इसके बाद ये लोग अपनी-अपनी जागीरों में जाकर चढ़ाई की तैयारी करने लगे। जिस समय जलालखा मार्ग में मेड़ते पहुँचा, उस समय उसे सिवाने की सेना के सरदार रामसिंह, सुलतानसिंह और अलीकुली आदि की तरफ़ से सूचना मिली कि यद्यपि वे लोग बादशाह की आज्ञानुसार चंद्रसेन को दबाने का प्रयत्न कर रहे हैं, तथापि वह अपनी और अपने सरदारों की वीरता और पहाड़ों के आश्रय के कारण अजेय हो रहा है । इसलिये यदि जलालखाँ भी शीघ्र ही उनकी मदद पर आ जाय, तो संभव है, कुछ सफलता मिल जाय । यह समाचार पाते ही वह तत्काल सिवाने की तरफ़ चल पड़ा । यथासमय इसकी सूचना चन्द्रसेनजी को भी मिल गई इसीसे यह मार्ग में ही अचानक आक्रमण कर उसके बल को नष्ट करने का मौका ढूँढने लगे। परन्तु किसी प्रकार इनकी गति-विधि का पता शत्रुदल को भी मिल गया । अतः उसने स्वयं ही आगे बढ़ इन पर आक्रमण कर दिया । इस एकाएक होनेवाले हमले से
१. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १५८ २. अकबरनामा, भा० ३, पृ० १६७ ३. ये दोनों बीकानेर-नरेश राव रायसिंहजी के छोटे भ्राता थे।
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