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सवाई राजा शूरसिंहजी किशनसिंहजी भी अपने भतीजे कर्ण के साथ मारे गए । जब महाराज को अपने भाई, भतीजे और प्रधान मंत्री के मारे जाने का हाल मालूम हुआ, तब इन्हें बड़ा दुख हुआ।
कुछ दिन बाद बादशाह ने इन्हें एक जोड़ी मोती और बहुत कीमती खासा देकर दक्षिण की तरफ़ भेजने की इच्छा प्रकट की । इस पर यह दो मास के लिये जोधपुर चले आएं। यहाँ पर सूरसागर के बगीचे में इन्होंने सोने और चाँदी से तुलादान किया। इसके बाद राज्य का प्रबंध कर यह अपने राजकुमार गजसिंहजी
१. 'तुजक जहाँगीरी' में लिखा है कि गोविंददास के मकान पर हमला करते समय स्वयं राजा किशनसिंहर्जा घोड़े से उतर कर उसके मकान में घुस गए थे । इसी से वह मारे गए (देखो पृ० १४४-१४५) । परन्तु मारवाड़ की ख्यातों में लिखा है कि राजा किशनसिंहजी महाराज के सजग होने के पहले ही गोविंददास को मारकर चल दिए थे। यह देख महाराज ने अपने पुत्र गजसिंहजी को उनका पीछा करने की आज्ञा दी । इसी के अनुसार उन्होंने कुछ चुने हुए वीरों को साथ लेकर किशनसिंहजी का पीछा किया । मार्ग में दोनों
पक्षों के बीच युद्ध होने पर किशनसिंहजी मारे गए। 'मुंत खिबुल-लुबाब' नामक इतिहास में लिखा है कि किशनसिंहजी का शोर सुनते ही सूरजसिंह तलवार लेकर बाहर चला आया और उसने किशनसिंह और करन को मार डाला। इसके बाद किशनसिंह के साथ के लोग राजा की हवेली में निकलकर लड़ते-भिड़ते बादशाह के महल की तरफ भागे । राजा सूरजसिंह भी उनका पीछा करता हुआ बादशाही दौलतखाने के दरवाजे तक जा पहुंचा। (दखो जिल्द १, पृ० २८१-२८२)।
“गुणरूपक' में लिखा है कि मेवाड़-विजय के बाद बादशाह को राठोड़ों का बढ़ता हुआ बल खटकने लगा। उसने सोचा कि राजा शूरसिंह, राजकुमार गजसिंह, केहरि (किशनसिंह), करमसेन, करन और भाटी गोविंददास बड़े बलवान हो रहे हैं । इससे इनको आपस में ही लड़ाकर निर्बल कर देना चाहिए । इसी के अनुसार उसने एक रोज़ दरबार के समय राजकुमार गजसिंहजी के सामने ही केहरि (किशनसिंहजी) को गोविंददास को मार डालने के लिये उकसाया । यह देख गजसिंहजी को भी क्रोध आ गया । अंत में बहुत कुछ कहा सुनी के बाद दोनों अपने अपने निवासस्थान को चले गए। इसके बाद किशनसिंहजी ने एक दिन पिछली रात को गोविंददास के मकान पर चढ़ाई कर उसे मार डाला । इसकी सूचना पाते ही गजसिंहजी शत्रु के मुकाबले के लिये
आ पहुँचे । युद्ध होने पर केहरि (किशनसिंहजी) और करन मारे गए । परन्तु करमसेन भाग निकला । (देखो पृ० १३-१७)।
कर्नल टाड ने इस घटना का राजा गजसिंहजी के समय में होना और शाहज़ादे खुर्रम के कहने से राजा किशनसिंह जी का भाटी गोविंददास को मारना लिखा है।
ऐनाल्स ऐन्ड ऐण्टिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान (क्रुक संपादित ), पृ० ६७४ | २. तुजुक जहाँगीरी, पृ० १४५ ।
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