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मारवाड़ का इतिहास
इसके बाद बख़तसिंहजी भी लौटकर नागोर चले आएं।
उस समय स्वर्गवासी सेनापति खाँडेराव दाभाडे का प्रतिनिधि पीलाजी भीलों और कोलियों की सहायता से स्वतंत्र हो रहा था, और महाराज की आज्ञा की कुछ भी परवा नहीं करता था । इसलिये वि० सं० १७८८ के माघ ( ई० सन् १७३२ की जनवरी) में महाराज ने ईदा लखधीर को उसे मारने की आज्ञा दी । इसी के अनुसार उसने डाकोर पहुँच उसे धोके से मार डाला । यह देख मरहटे बड़ोदा-प्रांत को छोड़कर डभोई के किले में चले गए । इस पर महाराज ने बड़ोदे पर अधिकार कर तत्काल ही डभोई के दुर्ग को भी घेर लिया । परंतु अन्त में वर्षा ऋतु के आ जाने से कुछ ही दिनों में इन्हें वहाँ का घेरा उठा लेना पड़ा।
१. बाँबे गजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० ३१२ ।
ख्यातों में इसके बाद महाराज का कुंतजी कदम के विरुद्ध सेना भेजना और उसका वापस लौट जाना लिखा है । उनमें इसी के बाद महाराज के बुलाने पर राजाधिराज बखतसिंहजी का अहमदाबाद वापस आना भी लिखा है।
यह बात महाराज के वि. सं. १७८८ की फागुन बदी १० के पत्र से भी प्रकट होती है । परंतु उसमें पीलाजी पर चढ़ाई करने का उल्लेख है ।
उसी पत्र से यह भी ज्ञात होता है कि उस समय महाराज के मनसब के सवारों में दो हज़ार सवारों की वृद्धि की गई थी। २. बाँबे गजेटियर, भा० १, खंड १, पृ० ३१३ । वि. सं. १७८८ (श्रावणादि) चैत्रादि सं.
१७८६ की चैत्र सुदी ११ के महाराज के पत्र में, जो नडियाद से लिखा गया था, लिखा है-पीलाजी के माही पार करने पर हमारी सेना भी चंडूला से बाहर निकल कूच की तैयारी करने लगी। यह देख पीलाजी के आदमी हमसे मिलने को प्राए । हमने उनसे बड़ोदा, डभोई आदि बादशाही थाने छोड़कर शाही सेवा स्वीकार करने को कहा । परंतु पीला ने उत्तर में कहलाया कि वह तीन सूबेदारों के समय से बड़ोदे पर काबिज़ है । सरबुलंद ने
उस पर चढ़ाई की थी, परंतु उलटा उसे चौय देने का वादा कर लौटना पड़ा। ये लोग सम्मुख रण में लोहा न लेकर इधर-उधर से हमला कर शत्रु-सैन्य को तंग करते हैं । इससे जैसे ही हमारी अगाड़ी की सेना पाँच कोस आगे बढ़ी, वैसे ही वह भागकर डाकोर जा पहुँचा ।
इस पर हमने सोचा कि इस प्रकार चढ़ाई करने से वह और मी दूर भाग जायगा । अतः पंचोली रामानंद, ईदा लखधीर और भंडारी अजबसिंह को उससे बातचीत तय करने के बहाने उधर रवाना किया। उनसे यह भी कह दिया गया था कि तुम्हारी तरफ से सूचना मिलते ही यहाँ से सेना रवाना कर दी जायगी।
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