Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 454
________________ मारवाड़ का इतिहास के भी बहुत-से वीर मारे जा चुके थे, इसलिये वहाँ पर अधिक ठहरना हानिकारक समझ वह रीयाँ में महाराज के पास चले आए । इसके बाद फिर शीघ्र ही दोनों भाइयों ने मिलकर दुबारा राजा जयसिंहजी पर चढ़ाई की। परंतु जयसिंहजी हाल में ही राठोड़ों के बाहु-बल की परीक्षा कर चुके थे, इसलिये उन्होंने महाराज से मेल कर लेने में ही अपना हित समझा, और इसीसे मारवाड़ के परबतसर आदि सातों परगने, जिन पर उन्होंने पहली बार की चढ़ाई के समय अधिकार कर लिया था, महाराज को सौंप दिए । इसके साथ ही हाल के गँगवाने के युद्ध में हाथ लगी बखतसिंहजी की सेना की दो तोपें और मुरलीमनोहरजी की मूर्ति सहित हाथी भी वापस देकर इनसे संधि कर ली। इसके बाद महाराना जगत थे । ऐसे अवसर पर यद्यपि गजसिंहपुरे के ठाकुर ने पीछे के जंगल की तरफ इशारा कर उससे उधर लौट चलने का आग्रह किया, तथापि राठोड़-वीर ने पीछे पैर रखने से साफ इनकार कर दिया, और सामने ही जयपुर-नरेश जयसिंहजी के पचरंगे झंडे को देख उस पर हमला कर दिया। इस पर चतुर कुंभानी ने, जो राजा जयसिंह और उनके झंडे के पास ही खड़ा था, उन्हें (जयसिंहजी को) शीघ्र ही वहाँ से टल जाने की सलाह दी। इसके अनुसार वह शत्रु के सामने पीठ दिखाना लजा-जनक समम बाजू की ओर के खंडेले की तरफ़ निकल गए । परन्तु रणांगण छोड़ते समय उनके मुख से आप-ही-आप ये शब्द निकल पड़े: __"यद्यपि आज तक मैंने १७ युद्धों में भाग लिया है, तथापि आज से पहले एक भी युद्ध ऐसा नहीं हुआ, जिसमें आज के युद्ध की तरह केवल तलवार के बल से ही विजय का फैसला हुआ हो ।” कर्नल टॉड ने आगे लिखा है कि इस प्रकार सफलताओं से पूर्ण आयु व्यतीत करनेवाले राजस्थान के एक सबसे ज़बरदस्त, विद्वान् और बुद्धिमान् नरेश को मुट्ठी-भर वीरों के सामने से इस बेइज्जती के साथ हटना पड़ा। इससे यह कहावत और भी पुष्ट हो गई "युद्ध में एक राठोड़ ने दस कछवाहों की बराबरी की।" इसी के आगे कर्नल टॉड जयपुर-नरेश जयसिंहजी के कवियों द्वारा की गई बखतसिंहजी की तारीफ़ के विषय में इस प्रकार लिखता है: "Jai Singh's own bards could not refrain from awarding the meed of valour to their foes, and composed the following stanzas on the occasion: "Is it the battle cry of Kali, or the war-shout of Hanumanta, or the hissing of Seshnag, or the denunciation of Kapaliswar ? Is it the incarnation of Narsingh, or the darting beam of Surya ? or the death-glance of the Dakini ? or that froin the central orb of Trinetra? Who could support the flames from this volcano of steel, when Bakhta's sword becarne the sickle of time ?" (ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान (क्रुक-संपादित), भा॰ २, पृ० १०५०-१०५१) । १. ख्यातों में इन्हीं के साथ 'केकडी' का भी वापस देना लिखा है। २. राजाधिराज बखतसिंहजी को मुरलीमनोहरजी का इष्ट था। इसी से उनकी मूर्ति, हाथी के हौदे में बिठलाई जाकर, युद्ध में साथ रखी जाती थी। यही हाथी गँगवाने के युद्ध Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516