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२८. महाराजा रामसिंहजी
यह मारवाड़ - नरेश महाराजा अभयसिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १७८७ की प्रथम भादों बदी १० ( ई० सन् १७३० की २८ जुलाई) को हुआ था; और पिता की मृत्यु के बाद वि० सं० १८०६ की सावन सुदी १० ( ई० सन् १७४६ की १३ जुलाई ) को यह मारवाड़ की गद्दी पर बैठे । यद्यपि यह भी अपने पिता के समान ही वीर प्रकृति के पुरुष थे, तथापि उस समय केवल उन्नीस वर्ष की अवस्था होने के कारण इनके स्वभाव में चंचलता अधिक थी । इसी से इनके राज्याधिकार प्राप्त कर लेने
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पर, मुँह-लगे लोगों के कहने-सुनने से, इनके और इनके चचा राजाधिराज बखतसिंहजी के बीच मनोमालिन्य हो गया और यह उनको जालोर का प्रांत लौटा देने के लिये दबाने लेगे । इसी बीच माँडा ठाकुर कुशलसिंह, चंडावल ठाकुर कूँपावत पृथ्वीसिंह, रायण ठाकुर बनैसिंह आदि मारवाड़ के कई सरदार इनसे प्रसन्न हो गएं । उनमें से जब कुछ लोग राजाधिराज बख़्तसिंहजी के पास नागोर पहुँचे, तब उन्होंने बड़े आदर-मान के साथ उन्हें अपने पास रख लिया । इससे प्रसन्न होकर महाराजा रामसिंहजी ने नागोर पर चढ़ाई की । यह देख राजाधिराज बखतसिंहजी ने भी अपने अधीन के प्रत्यक
१. कुछ ख्यातों से ज्ञात होता है कि महाराजा रामसिंहजी ने, अपने राजतिलक के सम्बन्ध में आया हुआ, अपने चचा की तरफ का 'टीका' ( उपहार ) यह कहकर लौटा दिया था कि जब तक नागोर का प्रांत हमें नहीं सौंपा जायगा तब तक हम यह स्वीकार नहीं करेंगे ।
२. ख्यातों से ज्ञात होता है कि अपनी मृत्यु के पूर्व महाराजा अभयसिंहजी ने रीयाँ के ठाकुर शेरसिंह से राजकुमार : रामसिंहजी के पक्ष में बने रहने की प्रतिज्ञा करवा ली थी । परंतु एक बार रामसिंहजी ने उस ठाकुर के एक सेवक को ले लेने का हठ किया । इस कारण वह भी प्रसन्न होकर अपनी जागीर में चला गया । अन्त में जब महाराजा रामसिंहजी ने नागोर पर चढ़ाई की, तब कोसाने के चांदावत देवीसिंह को भेजकर शेरसिंह को नागोर की इस चढ़ाई में साथ देने के लिये सहमत कर लिया और इसके बाद यह स्वयं याँ जाकर उसे साथ ले आए।
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