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मारवाड़ का इतिहास फिर एक बार अपना गया हुआ राज्य प्राप्त करने की चेष्टा की। परन्तु अन्त में इन्हें मारवाड़ के सिवाना, मारोठ, मेड़ता, सोजत, परबतसर, साँभर और जालोर प्रांत लेकर ही सन्तोष करना पड़ा । वि० सं० १८१३ ( ई० सन् १७५६ ) में अपने अधिकृत प्रांतों के महाराजा विजयसिंहजी द्वारा छीन लिए जाने पर महाराजा रामसिंहजी ने फिर मरहठों से सहायता ली थी। वि० सं० १८२९ की भादों सुदी ६ ( ई० स० १७७२ की ३ सितम्बर ) को जयपुर में महाराजा रामसिंहजी का स्वर्गवास हो गया ।
१. किसी-किसी ख्यात में इनकी मृत्यु की तिथि माघ सुदी ७ (ई० स० १७७३ की ३०
जनवरी) भी लिखी मिलती है। कहते हैं कि महाराजा रामसिंहजी ने १ टेला ( मेड़ते
परगने का) चारणों को और २ बासणी सेपां (जोधपुर परगने का) पुरोहितों को दिए थे । महाराजा रामसिंहजी के हाथ से जोधपुर निकल जाने के बाद की घटनाओं का यहां पर संक्षिप्त विवरण ही दिया गया है। क्योंकि उनका विस्तृत विवरण महाराजा बखतसिंहजी और महाराजा विजयसिंहजी के इतिहासों में लिखा जायगा ।
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