________________
महाराजा बनतसिंहजी मकानों और दुकानों के स्वामियों को हरजाना देकर संतुष्ट कर दिया था। सर्वसाधारण के सुभीते के लिये, शहर के बीच, कोतवाली का स्थान बनवाया था। इसी प्रकार 'मंडी' में की मसजिद गिरवाकर वहाँ पर नाज की बिक्री के लिये एक चौक बनवाया था। राव मालदेवजी के समय की बनी शहरपनाह का घिराव कम होने के कारण उसका फिर से विस्तार करवाया था। यह कार्य इन्होंने अपनी कुशलता से केवल ६ मास में ही संपूर्ण करवा लिया था। साथ ही इन्होंने जोधपुर के किले में भी अनेक सुधार किए थे । महाराजा जसवंतसिंहजी (प्रथम) का बनवाया महल गिरवाकर दौलतखाने का चौक बनवाया, और लोहापौल के पास के कोठारों को तुड़वाकर वहाँ का मार्ग चौड़ा करवा दिया। इनके अलावा किले में की मसजिद हटवाकर जनानी डेवढ़ी की नई पौल (दरवाजा ), नई सूरजपोल, आनंदघनजी का मंदिर आदि स्थान बनवाए ।
महाराजा बखतसिंहजी के महाराजकुमार का नाम विजयसिंहजी था ।
महाराजा बखतसिंहजी ने, घटना-वश, चारणों और पुरोहितों से अप्रसन्न होकर उनके अनेक गाँव जब्त कर लिए थे। परंतु अन्त समय पौकरन ठाकुर देवीसिंह की प्रार्थना पर वे सब-के-सब वापस कर दिए ।
'सहरुल मुताख़रीन' के लेखक गुलामहुसैनखाँ ने और कर्नल जेम्स टॉर्ड ने इनकी वीरता और बुद्धिमानी की बड़ी तारीफ़ लिखी है; और इन्हें अपने समय का श्रेष्ठ योद्धा और बुद्धिमान् शासक लिखा है ।
१. ख्यातों में लिखा है कि यद्यपि महाराज के अंत समय वे चारण और पुरोहित, जिनके
गाँव जब्त कर लिए गए थे, उपस्थित न थे, तथापि स्वयं ठाकुर देवीसिंह ने महाराज के
हाथ से संकल्प का जल ग्रहण कर दान का कार्य संपन्न किया था । इसके अलावा बखतसिंहजी ने और भी कई गाँव दान किए थे:
१ इंद्रपुरा (डीडवाने परगने का, वि० सं० १७८५ में ) नाथद्वारेवालों को, २ इंद्रपुरा (डीडवाने परगने का वि० सं० १७८६ में) और ३ चंगावड़ा छोटा (जोधपुर परगने का वि० सं० १८०८ में) चारणों को, ४ धुनाडी (नागोर परगने का वि० सं० १७८६ में) पुरोहितों को और ५ गुणसली (मेड़ते परगने का १८०८ में) पीरज़ादों को दिया था । इसी प्रकार कीरतपुरे की २,००० बीघा भूमि भी चारणों को दी थी।
२. इसका खुलासा उल्लेख महाराजा रामसिंहजी के इतिहास में किया जा चुका है । ३. इसका कुछ वर्णन महाराजा अभयसिंहजी के इतिहास में दिया गया है ।
३६६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com