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३० महाराजा विजयसिंहजी
यह महाराजा बख्रतसिंहजी के पुत्र थे । इनका जन्म वि० सं० १७८६ की ' मँगसिर वदि ११ ( ई० सन् १७२१ की ६ नवम्बर) को हुआ था । जिस समय सींधोली के मुकाम पर इनके पिता का स्वर्गवास हुआ, उस समय यह मारोठे (मारवाड़) में थे । पिता की अचानक मृत्यु का समाचार मिलने पर वहीं पर, वि० सं० १८०६ की भादों सुदि ( ई० सन् १७५२ के सितम्बर) में, यह गद्दी पर बैठे। इसके बाद यह मेड़ते होते हुए जोधपुर पहुँचे और वि० सं० १८०६ की मात्रै वदि १२ (ई० सन् १७५३ की ३१ जनवरी) को यहां पर इन्होंने अपने राज तिलक का उत्सव मनायो ।
९. कहीं-कहीं संवत् १७८७ भी लिखा मिलता है ।
२. ख्यातों में लिखा है कि इस अवसर पर महाराजा अजित सिंहजी के पुत्र किशोर सिंह ने भाय पर अधिकार कर लिया था । परन्तु महाराजा विजयसिंहजी ने मारोठ से रासठाकुर केसरीसिंह भाटी किशनसिंह, आदि को वहाँ भेज दिया। इससे किशोरसिंह युद्ध में मारा गया और भिगाय फिर महाराज के शासन में आगया ।
३. महाराजा विजयसिंहजी के समय का, वि० सं० १८०६ की माघ वदि १ ( ई० सन् १७५३ की २० जनवरी) का, एक लेख फलोदी से मिला है। इसमें इनके ज्येष्ठ पुत्र का नाम फतैसिंह लिखा है । [ जर्नल बंगाल एशियाटिक सोसाइटी ( ई० सन् १९१६ ), पृ० १०० ] ।
४. एक ख्यात में माघ के बदले मँग सिर लिखा है ।
५. जोधपुर के किले में एक संगमरमर का चबूतरा बना है । इसे 'शृंगार चौकी' कहते हैं और इसी पर यहां के महाराजाओं का राज - तिलक होता है । इस पर वि० सं० १८१० की माघ वदि ५ रविवार ( ई० सन् १७५४ की १३ जनवरी) का एक लेख खुदा है। उससे ज्ञात होता है कि यह चौकी विजयसिंहजी के राज्य समय उक्त तिथि को बन कर तैयार हुई थी। इस लेख में इनके महाराज कुमार का नाम फतैसिंह लिखा है । परन्तु उनकी मृत्यु महाराज की जीवितावस्था में ही हो गई थी ।
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