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२६. महाराजा बखतसिंहजी यह महाराजा अजितसिंहजी के पुत्र और महाराजा अभयसिंहजी के छोटे भाई थे। इनका जन्म वि० सं० १७६३ की भादों बदी ७ (ई० सन् १७०६ की १९ अगस्त) को हुआ था। वि० सं० १८०८ की सावन बदी २ (ई० सन् १७५१ की २९ जून) को इन्होंने अपने भतीजे महाराजा रामसिंहजी को हराकर जोधपुर की गद्दी पर अधिकार कर लिया । इसके बाद ही इनके राजकुमार विजयसिंहजी ने चढ़ाई कर भाद्राजन भी ले लिया ।
कुछ दिन बाद जब जय-आपा सिंधिया की सहायता से रामसिंहजी ने अजमेर और फलोदी पर फिर से अधिकार कर लिया, तब इन्होंने मेड़ते से डाबड़े के ठाकुर चाँदावत बहादुरसिंह को एक बड़ी सेना के साथ उधर रवाना किया, और साथ ही रामसिंहजी के साथ के सरदारों के नाम की बनावटी चिट्ठियाँ लिखवाकर, एक सेवक के हाथ, बड़ी चालाकी से, मरहटा फौज के सेनापति, सायबजी पटेल के पास पहुँचवादीं। इससे उसे उन सरदारों के महाराजा बखतसिंहजी से मिले होने का भ्रम हो गया और वह घबराकर रामसिंहजी को साथ लिए रामसर की तरफ़ चला गया । इसप्रकार रामसिंहजी के एकाएक मरहटों के साथ चले जाने से उनके साथ के कुछ सरदार तो डर कर अपनी-अपनी जागीरों को लौट गए. और कुछ रामसिंहजी के पास रामसर जा पहुँचे। इससे मौका पाकर बहादुरसिंह ने सहज ही अजमेर के किले पर अधिकार कर लिया। अन्त में जब सायबजी पटेल को सरदारों के नाम के पत्रों का बनावटी होना ज्ञात हुआ, तब वह बहुत पछताया । परंतु समय हाथ से निकल चुका था । इसलिये वह दक्षिण को चला गया और रामसिंहजी मंदसोर जा बैठे ।
१. मासिरुल उमरा, में लिखा है:
अजितसिंह के दो लड़के थे । पहला अभयसिंह और दूसरा बखतसिंह । बाप के मरने पर यही बखतसिंह मुल्क पर काबिज़ हुअा (भा० ३, पृ० ७५६ )।
परंतु उसमें का यह लेख भ्रम-पूर्ण है । २. इस घटना के पहले का इनका इतिहास महाराजा अजितसिंहजी, अभयसिंहजी और राम
सिंहजी के इतिहासों के साथ दिया जा चुका है । ३. ख्यातों में लिखा है कि आपाजी ने सायबजी पटेल को सेना देकर इनके साथ कर दिया था।
परंतु कर्नल टॉड ने महादजी पटेल का सेना लेकर इनके साथ प्राना लिखा है । ( एनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज़ ऑफ़ राजस्थान, भा० २, पृ० १०५८)।
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