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मारवाड़ का इतिहास उसे सूरजमल से संधि करनी पड़ी। इसके बाद जब वह (जुल्फिकार ) नारनौल पहुँचा, तब राजा बखतसिंह भी पूर्व-प्रतिज्ञानुसार वहाँ चला आया । उसके आने का समाचार पाते ही जल्फिकार सामने जाकर उसे लिवा लाया । उस समय राजा ने उसे जाट-नरेश सुरजमल की अधीनता स्वीकार कर लेने के कारण बहुत धिक्कारा । इसके बाद बखतसिंह और जुल्फिकारजंग दोनों अजमेर की तरफ रवाना हुए । इनके गोकलघाट के करीब ( अजमेर के निकट ) पहुँचने पर राजा रामसिंह भी जयपुर के राजा ईश्वरीसिंह के साथ तीस हजार सवार लेकर इनके मुकाबले को चला । 'अमीरुलउमरा', जुल्फिकारजंग राजा बखतसिंह के साथ पुष्कर, शेरसिंह की रीयाँ और मेड़ते होता हुआ पीपाड़ के पास पहुँचा । यहाँ पर बख़तसिंह ने 'अमीरुल उमरा' को समझाया कि जिस मार्ग से शाही सेना चल रही है, उस मार्ग में रामसिंह का तोपखाना लगा है। इसलिये तुमको इधर-उधर का ध्यान छोड़कर मेरे पीछे-पीछे चलना चाहिए । परंतु मूर्ख और अभिमानी जुल्फिकार ने जवाब दिया कि आदमी एक दफ़ा जिधर मुँह कर लेते हैं फिर उधर से उसे नहीं मोड़ते । इस पर बखतसिंह को लाचार हो, शत्रु की तोपों की मार से बचने के लिये, जुल्फिकार की सेना से हटकर चलना पड़ा। अपनी तोपों के पीछे खड़ी राजा रामसिंह की राजपूत-सेना भी जुल्फिकार की सेना के अपनी मार के भीतर पहुँचने तक धीरज बांधे खड़ी रही। परंतु जैसे ही उसकी फौज राजपूत-सेना की तोपों की मार में आ गई, वैसे ही उसने उस पर गोले बरसाने शुरू कर दिए। इससे जुल्फिकार के बहुत से सिपाही मारे गए । यह देख मुगल-फौज ने भी झटपट अपनी तोपों को ठीक कर युद्ध छेड़ दिया। कुछ देर की गोलाबारी के बाद मुगल सेना को पानी की आवश्यकता प्रतीत होने लगी । परंतु उस मैदान में पानी का कहीं भी पता न था। इससे प्यास के मारे वह और भी घबरा गई । इसके बाद जैसे ही राजा रामसिंह के तरफ़ की गोलाबारी का वेग घटा, वैसे ही वह मैदान छोड़ पानी की तलाश करने लगी, और उसकी खोज में भटकती हुई संयोग से राजा रामसिंह की सेना के सामने जा पहुँकी । उसकी यह दशा देख राजपूत सैनिकों ने अपने आदमियों को उसके लिये जल का प्रबन्ध कर देने की आज्ञा दी और उन्होंने कुओं से पानी निकालकर मुगल-सैनिकों को और उनके घोड़ों को तृप्त कर दिया। इस प्रकार अपने शत्रुओं को स्वस्थ हुआ देख राजपूतों ने उनसे कहा कि इस समय तुम्हारे और हमारे बीच युद्ध चल रहा है, इसलिये अब तुम्हें यहाँ से शीघ भाग जाना चाहिए "।
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