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महाराजा अभयसिंहजी सिंहजी (द्वितीय) ने बीच में पड़ इस संधि को पक्की करने के लिये दोनों पक्षों के बीच मित्रता करवा दी । यह घटना वि० सं० १७१८ ( ई० सन् १७४१ ) की है ।
वि० सं० १८०० ( ई० सन् १७४३ ) में जयपुर - नरेश जयसिंहजी का स्वर्गवास हो गया, और उनके उतराधिकारी राजा ईश्वरीसिंहजी वहाँ की गद्दी पर बैठे' । इसी वर्ष महाराज अभयसिंहजी ने सेना भेजकर अजमेर के किले पर अधिकार कर लियाँ । यह समाचार सुन जयपुर-नरेश ईश्वरीसिंहजी ने अजमेर पर चढ़ाई की । इसी समय भट्ट गोविंदराम ने कोटे से ५,००० सवारों के साथ आकर महाराज का पक्ष ग्रहण किया । परंतु अन्त में विना लड़े ही दोनों पक्षों के बीच संधि हो गई । इस से अजमेर महाराजा अभयसिंहजी के अधिकार में ही रह गया । यह घटना वि० सं० १८०१ ( ई० सन् १७४४ ) की है ।
वि० सं० १८०४ ( ई० सन् १७४७ ) में महाराज ने बीकानेर पर फिर एक फ़ौज भेजी । उस समय वहाँ पर स्वर्गवासी महाराजा जोरावरसिंहजी के चचा आनन्दसिंहजी के द्वितीय पुत्र गजसिंहजी का अधिकार था । अतः महाराज की सेना कोई देख महाराज गजसिंहजी के बड़े भ्राता अमरसिंहजी भी उससे आ मिलें । इस पर राजा गजसिंहजी ने बड़ी वीरता से इनका सामना किया । यह घटना श्रावण ( जुलाई ) महीने की है । इसके बाद महाराज ने एक सेना वहाँ और भेज दी । परन्तु कुछ काल बाद ही दोनों पक्षों के बीच संधि हो गई। इससे महाराज की सेना जोधपुर लौट आई ।
में भड़ककर शत्रु सेना में चला गया था । इसी प्रकार राजाधिराज की सेना के करीब-करीब सारे वीरों के मारे जाने के कारण उनकी दो तोपें भी जयपुरवालों के हाथ लग गई थीं । १. ख्यातों में इस घटना का आश्विन सुदी १४ को होना लिखा है ।
२. क्रॉनोलॉजी ऑफ मॉडर्न इंडिया, पू०
१८३ ।
३. ख्यातों में लिखा है कि इसी समय महाराज के सेनापति ने राजा किशोरसिंहजी को १२ गाँवों-सहित राजगढ़ का अधिकार सौंप दिया था। उनमें यह भी लिखा है कि महाराज की आज्ञा से राजा किशोरसिंह और पंचोली बालकृष्ण ने जाकर राव उम्मेदसिंहजी को बूँदी पर अधिकार करने में सहायता दी थी ।
४. ‘बीकानेर की तवारीख' में अमरसिंह का महाराज के पास सहायता के लिये अजमेर ग्राना और उसी के लिये महाराज का बीकानेर पर फ़ौज भेजना लिखा है । उसमें यह भी लिखा है कि अंत में उसे असफल होकर लौटना पड़ा था ( देखो पृ० १७३-१७५ ) । ५. अगली सेना के सेनापति भंडारी रत्नसी के मारे जाने से यह नई सेना भेजी गई थी ।
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