________________
मारवाड़ का इतिहास
इसी वर्ष के माघ (ई० सन् १७४८ की जनवरी ) में अहमदशाह दुर्रानी ने पंजाब पर चढ़ाई की' । यह देख बादशाह ने महाराजा अभयसिंहजी और राजा बखतसिंहजी को अपनी सहायता के लिये दिल्ली बुलवाया । यद्यपि महाराज राज्य के कार्यों में लगे होने से उधर न जा सके, तथापि राजाधिराज बखतसिंहजी वहाँ जा पहुंचे।
इसके बाद वि० सं० १८०४ की फागुन बदी ५ ( ई० सन् १७४८ की - फरवरी) को बादशाह ने उन्हें शाहजादे अहमदशाह के साथ शत्रुओं के मुकाबले को भेजा । सरहिंद में युद्ध होने पर अफगान हारकर भाग गए, और लाहौर पर फिर मुहम्मदशाह का अधिकार हो गया।
वि० सं० १८०५ की वैशाख बदी १४ (ई० सन् १७४८ की १५ अप्रेल ) को बादशाह मुहम्मदशाह मर गया, और उसका पुत्र अहमदशाह दिल्ली के तख़्त पर बैठा । इसके बाद वि० सं० १८०५ की सावन सुदी १ (ई० सन् १७४८ की १५ जुलाई) को उसने राजाधिराज बखतसिंहजी को गुजरात की सूबेदारी दी। परन्तु उस समय चारों तरफ़ मरहटों के आक्रमण हो रहे थे । अतः उन्होंने गुजरात जाना उचित न समझा, और वह दिल्ली से लौटकर जोधपुर चले आएं । यहाँ पर कुछ दिन बाद ही फिर महाराज और बखतसिंहजी के बीच मनोमालिन्य उठ खड़ा हुआँ । परन्तु शीघ्र ही मल्हारराव ने बीच में पड़ दोनों में मित्रता करवा दी।
इसी वर्ष जयपुर-नरेश ईश्वरीसिंहजी और उनके छोटे भाई माधोसिंहजी के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ। इस पर मल्हारराव होल्कर ने माधोसिंहजी और बँदी के उम्मैदसिंहजी का पक्ष लेकर जयपुर पर चढ़ाई की । इस समय महाराना जगतसिंहजी
१. क्रॉनोलॉजी ऑफ़ मॉडर्न इन्डिया, पृ० १८८ । २. क्रॉनोलॉजी ऑफ़ मॉडर्न इन्डिया, पृ० १८८ । ( यद्यपि उसमें उस दिन १८ फरवरी का
होना लिखा है, तथापि गणना से १६ सफर को ८ फरवरी आती है)। ३. 'क्रॉनोलॉजी ऑफ़ मॉडर्न इन्डिया' में उस दिन हि० सन् १९६१ की २७ रबिउल
आखीर को ई० सन् १७४८ की २७ अप्रेल का होना लिखा है । (देखो पृ० १८८)। ४. बाँबे गजेटियर, भा० १, खं. १, पृ० ३३२ । ५. किसी-किसी ख्यात में लिखा है कि इसी समय महाराज ने बखतसिंहजी से जालोर लेकर ___ उसकी एवज़ में उन्हें डीडवाने का प्रांत दिया था। ६. ख्यातों में सौंभर, डीडवाने और जालोर के बारे में मनोमालिन्य होना लिखा है।
३५६
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com