Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

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Page 452
________________ मारवाड़ का इतिहास १७४१ ) में, महाराज अभयसिंहजी बीकानेर का घेरा उठाकर जोधपुर चले आए । इसी गड़बड़ में मौका पाकर बख़्तसिंहजी ने फिर मेड़ते पर अधिकार कर लिया । परंतु अन्त में दोनों भाइयों के आपस में फिर सुलह हो गई । जयपुर - महाराज भी कुछ दिन जोधपुर में रहकर और भंडारी रघुनाथ के समझाने पर फ़ौज खर्च के रुपये वसूल कर वापस लौट गएँ । इसके बाद वि० सं० १७९८ के ज्येष्ठ ( ई० सन् १७४१ की मई ) में महाराज ने जयपुरवालों से बदला लेने का इरादा किया, और इसकी सूचना बखतसिंहजी के पास भी भेज दी । इस पर उन्होंने अजमेर पहुँच उस पर अधिकार कर लिया । जैसे ही आगरे में राजा जयसिंहजी को जोधपुरवालों के अजमेर पर अधिकार कर जयपुर पर आक्रमण करने के विचार की सूचना मिली, वैसे ही वह ५०,००० सवारों को लेकर इनके मुक़ाबले को चल पड़े । परंतु अभी महाराज अभयसिंहजी का मुकाम रीयाँ में ही था कि राजाधिराज बखत सिंहजी को शत्रु सैन्य के ( अजमेर के पास ) गँगवाना नामक स्थान पर पहुँचने का समाचार मिला । इस पर वह महाराज के आने की राह न देख अकेले ही जयपुर की सेना से जा भिड़े । ख्यातों से ज्ञात १. बीकानेर के इतिहास में इस घेरे का तीन महीने और पाँच दिन रहना लिखा है (देखो पृ० १६८ ) । मारवाड़ की ख्यातों में महाराज का सावन सुदी ४ को जोधपुर पहुँचना लिखा है । २. किसी-किसी ख्यात में लिखा है कि मेल करते समय महाराज ने बखतसिंहजी की इच्छा के अनुसार मेड़ते के बदले जालोर का प्रांत उनको दे दिया था । ३. ख्यातों में लिखा है कि जोधपुर में मुकाबला होने के पूर्व ही सुलह होजाने से जयपुर वालों को मिथ्याभिमान होगया था । इसीसे उनके लौटने के समय भखरी के ठाकुर मेड़तिया केसरीसिंह ने उनका गर्व मिटाने के लिये बड़ी वीरता से इनका सामना किया । इस विषय का यह सोरठा प्रसिद्ध है: केहरिया करनाल, जो न जुडत जयसाह सूँ । मोटी वगाल, रहती सिर मारूधरा ॥ ४. किसी-किसी ख्यात में लिखा है कि जयसिंहजी ने जोधपुर से लौटते हुए अजमेर पर अधिकार कर लिया था । इसी से बखतसिंहजी ने वहाँ पहुँच उनके आदमियों को भगा दिया । श्रीयुत सारडा ने अपने 'अजमेर' नामक इतिहास में लिखा है : ३० सन् १७३१ ( वि० सं० १७५८ ) के कुछ काल बाद भरतपुर के जाटों ने राजा चूडामन की अधीनता में आगरे पर आक्रमण शुरू कर दिए। बादशाह ने वहाँ की रक्षा का भार जयपुर नरेश ર Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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