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मारवाड़ का इतिहास
इन बराबर के झगड़ों से नष्ट-भ्रष्ट होते हुए गुजरात में भयंकर दुर्भिक्ष ने और मी हालत खराब कर दी।
वि० सं० १७८६ के फागुन ( ई० सन् १७३३ की फ़रवरी ) में खाँडेराव की विधवा स्त्री ऊमाबाई ने, पीलाजी की मृत्यु का बदला लेने के लिये उसके पुत्र दामाजी गायकवाड़ आदि को साथ लेकर, अहमदाबाद पर चढ़ाई कर दी । परंतु इसमें उसे पूरी सफलता नहीं हुई । अन्त में दुर्गादास के पुत्र अभयकरण के द्वारा यह तय किया गया कि उसे वहाँ की आमदनी की चौथ ( चौथा भाग ) और दसोत ( दसवाँ भाग ) के अलावा अहमदाबाद के खजाने से अस्सी हजार रुपये और दिए जायँ । बादशाहने मी समय देख महाराज की की हुई इस संघि को पसन्द किया, और इनके लिये एक खिलअत भेजा।
वि० सं० १७६० ( ई० सन् १७३३ ) में महाराज ने गुजरात के सूबे का प्रबन्ध रत्नसिंह भंडारी को सौंप दिया, और स्वयं बखतसिंहजी के साथ जालोर होते हुए शाहपुरवालों से दंड के रुपये लेकर जोधपुर चले आएँ ।
१. वि० सं० १७८६ की भादों बदी १ के, महाराज के अपने वकील के नाम लिखे, पत्र में
लिखा है कि गुजरात में भयंकर अकाल है । नाज एक रुपये का सेर-भर तक बिक चुका है, फौज की तनख्वाह के तीस लाख रुपये चढ़ गए हैं । इससे लोग भागने का इरादा कर रहे हैं । ऐसी हालत में यदि नवाब रुपयों का प्रबंध शीघ्र नहीं करेगा, तो हम द्वारका
यात्रा कर यहाँ से लौट आवेंगे । २. बाँबे गजेटियर, भा• १, खं० १, पृ० ३१४ । ३. बाँबे गजेटियर भा० १, खंड १, पृ० ३१४ । इसमें महाराज का जोधपुर होते हुए दिल्ली
जाना भी लिखा है । इसी से अगले वर्ष जवाँमर्दखाँ ने महाराज के भ्राता आनन्दसिंह और रायसिंह से ईडर छीन लेने के लिये चढ़ाई की । परंतु उन्हों ने मल्हारराव होल्कर और रानोजी सिंधिया की ( जो उस समय मालवे में थे) सहायता प्राप्त कर उलटा उसे १,७५,००० रुपये दंड के देने को बाध्य किया । इसमें से २५,००० रुपये तो उसी समय ले लिए गए, और बाकी के रुपयों के एवज़ में जवाँमर्दखाँ का भाई जोरावरखाँ और अघाजी कोली का प्रतिनिधि अजबसिंह अमानत के तौर पर रक्खे गए । (बाँबे गजेटियर, भा० १, खंड १, पृ. ३१५)। ई० सन् १७३५ में महाराज के प्रतिनिधि रत्नसिंह को उसके खर्च के लिये धौलका-प्रांत दिया था। (बाँबे गजेटियर, भा० १, खं० १,
पृ० ३१५)। ४. 'मनासिरुल उमरा' में इनका वि० सं० १७८९-६० (ई० सन् १७३२-३३ ) में जोधपुर
लौटना लिखा है । परंतु वहीं पर उक्त इतिहास के लेखक ने अजितसिंहजी के मरने
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