Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

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Page 441
________________ महाराजा अभयसिंहजी इसके बाद चैत्र सुदी ६ को २,००० चुने हुए सवार भेजे गए। बातचीत करने को गए हुए हमारे आदमियों ने पीलू को मार डाला । इसी अवसर पर ( दो घंटे रात जाते-जाते ) हमारी सेना के सवार भी वहाँ जा पहुँचे । इससे पीलू का भाई मैमा और उसके बहुत से सैनिक भी मारे गए । ७०० घोड़े और जंजालें ( लम्बी बंदूकें ) तथा अन्य बहुत-सा सामान लूट में हमारे सैनिकों के हाथ लगा | अब हम शीघ्र ही बड़ोदे पहुँच उसे भी दुश्मन से खाली करवाने वाले हैं । हमारी सेना के ४० सिपाही मारे गए, और ५० जमादार और १००-१५० वीर घायल हुए हैं। इस बात की पुष्टि वि० सं० १७८८ ( चैत्रादि सं० १७८६ ) की वैशाख सुदी १३ के महाराज के पत्र से भी होती है । उसमें पीलू के साथ १,५०० सवारों और ५,००० पैदल सिपाहियों के होने का उल्लेख है । साथ ही उसमें यह भी लिखा है कि बातचीत करने को गए हुए हमारे आदमियों का पत्र मिलते ही हमने सेना भेज दी थी। जैसे ही यह सेना पीलाजी के लश्कर के पास पहुँची, वैसे ही लखधीर ने अपनी वापस रवानगी की आज्ञा प्राप्त करने के बहाने पीला के निवास स्थान में घुसकर उसे मार डाला । इसी अवसर पर पीला का भाई भी सख्त घायल हुआ, और उसके साथ के ५ सरदार मारे गए। शत्रु के सवारों के ८०" घोड़े हमारी सेना के हाथ आए । इसके बाद हम सेना लेकर वैशाख सुदी ८ को बड़ोदे पहुँचे । कंडाली की गढ़ी और दूसरे दो चार स्थानों से शत्रु मार भगाया गया । अब वे लोग नर्मदा पर के कोरल गाँव और डभोई के किले में एकत्रित हुए हैं । इनकी संख्या अत्यधिक है । साथ ही त्र्यंबकराव की मा और ऊदा पँवार के भी इनकी सहायता में आने की सूचना है । आने पर उनको भी सज़ा दी जायगी । कल हम बड़ोदे से रवाना होकर नर्बदा की तरफ जानेवाले हैं। अब तक २४ किले तो शत्रुओं से छीन लिए गए हैं, और जो बच गए हैं, उन पर भी शीघ्र ही दख़ल कर लिया जायगा । वि० सं० १७८८ ( चैत्रादि संवत् १७८६ ) की ज्येष्ठ वदी २ के महाराज के पत्र में लिखा है कि शत्रुओं ने डभोई के किले में एकत्रित होकर उपद्रव उठाया है । एक तो वहाँ शत्रुओं की बहुत बड़ी संख्या है । दूसरे वह किला भी बहुत मज़बूत है और हमारे पास उसके मासरे के योग्य बड़ी-बड़ी तोपों का अभाव है। शीघ्र ही बरसात का मौसम आनेवाला है । यदि इससे पूर्व ही उक्त क़िला हाथ न आया, तो यहाँ पर मरहटों का दल और भी बढ़ जायगा । उस समय इसका हाथ आना कठिन होंगा । वि० सं० १७८८ ( चैत्रादि संवत् १७८६ ) की आषाढ़ बदी ११ के महाराज के पत्र में भी येही बातें लिखी हैं । परंतु उससे यह भी ज्ञात होता है कि बड़ोदा और जंबूसर के किले तो इसके पूर्व ही जीत लिए गए थे, उस समय डभोई के किलेवालों के साथ युद्ध हो रहा था। चाँपानेर का बड़ा किला मी शत्रुओं के अधिकार में था । महाराज की सेना को लम्बी नालियोंवाली तोपों की सख्त ज़रूरत थी । इसलिये महाराज ने अपने वकील को लिखा था कि वह नवाब ( शाही प्रधान मंत्री ) से कहकर सूरत के किलेदार के नाम शीघ्र ही दो बड़ी तोपें भेजने की आज्ञा भिजवा दे । काम हो जाने पर वे तोपें लौटा दी जायँगी । इसी के साथ सोहराबखाँ को भी अपनी सेना लेकर वहाँ पहुँचने का हुक्म भिजवाने में शीघ्रता करने को लिखा गया था । ये सब पत्र महाराज ने शाही दरबार में रहनेवाले अपने वकील के नाम लिखे थे । ३४५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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