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मारवाड़ का इतिहास
यद्यपि इनका अधिक समय मारवाड़ से बाहर ही बीतता था, तथापि यह अपने देश के प्रबन्ध की तरफ़ भी पूरा-पूरा ध्यान रखते थे । इन्होंने ही काबुल से वहाँ की मिट्टी और अनार के बीज ( तथा पौधे ) भेजकर जोधपुर के बाहर कागा नामक स्थान में एक बगीचा लगत्राया था । यद्यपि यह बगीचा इस समय उजड़ गया है, तथापि यहाँ के पौधों के इधर-उधर फैल जाने से आज भी जोधपुर के अनार मशहूर समझे जाते हैं ।
'मत्र्यसिरुलउमरी' से पता चलता है कि इन्होंने औरङ्गाबाद के बाहर (पूर्व की तरफ़ ) अपने नाम पर जसवन्तपुरा बसाकर उसके पास जसवन्तसागर - नामक तालाब बनवाया था और इसी तालाब के तट पर इनके रहने के महल थे 1
वि० सं० १७२० में इनकी हाडी रानी ने ( जो बूँदी - नरेश हाडा शत्रुसाल की कन्या थी ) जोधपुर नगर से बाहर 'राईका बाग' नामक एक बाग बनवाकर उसी के पास अपने नाम पर हाडीपुरा बसाया था । यद्यपि इस समय हाडीपुरे का कुछ भी चिह्न बाकी नहीं है, तथापि यह बगीचा आज भी उसी नाम से प्रसिद्ध है । इसी रानी का बनवाया कल्याणसागर - नामक तालाब भी राई के बाग के पास इस समय रातानाडा के नाम से विख्यात है ।
इनकी देवड़ी रानी ने वि० सं० १७६५ ( ई० स० १७०८ ) में सिरोही से आकर सूरसागर के बगीचे में तुला- दान किया था । यह बात उक्त स्थान पर लगे लेख से प्रकट होती है ।
इनकी शेखावत रानी ने, जो खंडेला की थी, शेखावतजी का तालाब बनवाया था । स्वयं महाराज ने वि० सं० १७११ के भादों में पौकरन के किले में एक पौल (दरवाजा) बैनवाई थी ।
१. देखो भा० ३, पृ० ६०३ ।
२. यहाँ के वर्तमान महल वग़ैरा महाराजा जसवंतसिंहजी द्वितीय ने बनवाए थे।
३. इस तालाब का जीर्णोद्धार महाराजा जसवंतसिंहजी द्वितीय के कनिष्ठ भ्राता महाराज प्रतापसिंहजी ने करवाया था ।
४. यह बात वहाँ पर के एक लेख से प्रकट होती है।
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