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मारवाड़ का इतिहास पर चढ़ाई कर दी । परन्तु अन्त में यवन-वाहिनी के वहाँ पहुँच जाने से इनको जालोर लौट आना पड़ा।
इसी समय राव इन्द्रसिंह के पुत्र मोहकमसिंह ने बगड़ी ठाकुर दुर्जनसिंह के द्वारा, महाराज के मंत्री चाँपावत उदयसिंह को अपनी तरफ़ मिला लिया, और वि० सं० १७६२ के माघ ( ई० सन् १७०६ की जनवरी ) में यवन-वाहिनी को लेकर चुपचाप जालोर पर चढ़ाई कर दी । जैसे ही महाराज को चाँपावत तेजसिंह द्वारा चाँपावत उदयसिंह के विश्वास-घात की सूचना मिली, वैसे ही यह भी युद्ध के लिये तैयार हो गए । परन्तु वहाँ का रंग-ढंग देख तेजसिंह ने कुछ समय के लिये महाराज के इस विचार को रोक दिया । इस पर महाराज अपने कुटुम्ब के साथ किले से निकलकर ( ५ कोस पर के ) अगवारी नामक गांव में चले गए, और जालोर पर मोहकमसिंह का अधिकार हो गया। इसके बाद इधर तो चाँदारूण का ठाकुर मेड़तिया कुशलसिंह और बलूँदे का चाँपावत विजयसिंह इस चढ़ाई की सूचना पाते ही अपने-अपने स्थानों से तत्काल रवाना होकर महाराज के पास आ पहुँचे, और उधर वीर जगरामसिंह और भाद्राजण का ठाकुर जोधा बिहारीसिंह भी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ वहाँ आ गए । बिहारीसिंह की सेना में राजपूतों के साथ ही बहुत से भील भी थे।
इस प्रकार बल संग्रह हो जाने पर महाराज ने जालोर पर हमला कर दिया । यह देख मोहकमसिंह और उदयसिंह किला छोड़कर समदड़ी की तरफ़ चले गए । जब
पाने की आशा से दुर्गादास को मारने या पकड़ने का जिम्मा लिया । परन्तु इसके बाद दुर्गादास का कुछ पता नहीं चलता । अतः संभव है, सफ़दर अपने कार्य में सफल हो गया हो । ( देखो भा० १, खंड १, पृ० २६५ ) परन्तु दुर्गादास वि० सं० १७७४ ( ई० सन् १७१७ ) तक जीवित था। इससे उपर्युक्त गजेटियर के लेखक का यह अनुमान ठीक
प्रतीत नहीं होता। 'हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब' में लिखा है कि ई० सन् १७०४ की मई में औरङ्गजेब ने दुर्गादास के भाई खेमकरण और भतीजे देवकरण और दलकरण को अपनी नौकरी से हटा दिया । साथ ही उसने दुर्गादास को अहमदाबाद से दरबार में पकड़ लाने का भी हुक्म दिया। परंतु अगले ही महीने यह हुक्म रद कर दिया गया। ( हिस्ट्री ऑफ़ औरङ्गजेब, भा० ५, पृ० २६१ फुटनोट)।
१. इसका जन्म वि० सं० १७२८ की आश्विन सुदि ३ को हुआ था। .. २. 'राजरूपक' में इस युद्ध का माघ सुदी १३ को होना लिखा है । ( देखो पृ० १६६ )।
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