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महाराजा अजितसिंहजी इसके बाद यह मंडोर, नागोर और मेड़ते का दौरा करते हुए पुष्कर पहुँचे । इसी बीच बादशाह फ़र्रुखसियर और सैयदों के बीच के मनोमालिन्य ने उग्र रूप धारण कर लिया । यह देख बादशाह ने कुतुबुल्मुल्क को धोके से पकड़कर मारना चाहा । परंतु चालाक सैयद को इस बात का पता लग जाने से वह सचेत होगया । इस पर बादशाह ने नाहरख़ाँ के द्वारा महाराज को अपनी सहायता के लिये बुलवायो । परंतु नाहरखाँ स्वयं भी गुप्त रूप से सैपदों से मिला हुआ था । इसीसे उसने बादशाह की अव्यवस्थितचित्तता का वर्णन कर महाराज का चित्त भी उसकी तरफ से फिरा दियो ।
वि० सं० १७७५ की भादों सुदी ६ ( ई० सन् १७१८ की २० अगस्त) को जब महाराज दिल्ली के पास पहुंचे, तब बादशाह ने इनके लिये एतकादखाँ के साथ एक कटार भेजी, और इनकी अगवानी के लिये शम्सामुद्दौला को नियत कर उसे आज्ञा दी कि वह महाराज के सामने जाकर जहाँ तक हो, खुशामद आदि से उन्हें अपनी तरफ मिलाने का प्रयत्न करे । परंतु महाराज बादशाह की अस्थिरता और शाही दरबार की हालत से परिचित हो चुके थे । अतः इन्होंने कुतुबुल्मुल्क के साथ जाकर ही बादशाह से मिलना उचित समझा। इसी के अनुसार जब यह दूसरे दिन मंत्री के साथ जाकर बादशाह से मिले, तब ऊपर से तो उसने खिलअत आदि देकर इनका
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१. अजितोदय, सर्ग २५, श्लो ४ २३ । परन्तु उक्त काव्य में इनका जयपुर-नरेश जयसिंहजी की सलाह से बुलाया जाना और यह देख सैयद भ्राताओं का इनसे मेल कर लेना लिखा है | 'मुंतखल्लुबाब' में बादशाह का महाराज को अहमदाबाद से बुलवाना और 'महाराजा' के ख़िताब के साथ ही अन्य तरह से भी इनके पद और मान में वृद्धि कर इन्हें अपनी तरफ़ मिलाने की चेष्टा करना लिखा है । ( देखो भा २, पृ० ७६२ ) ।
फर्रुख़सियर के लिखे इस विषय के दो फ़रमान मिले हैं । इनमें बड़ी खुशामद के साथ महाराज दिल्ली आने का आग्रह किया गया है । परन्तु दोनों में ही सन् और तारीख नहीं दी गई है।
हां, इनमें के एक फ़रमान से प्रकट होता है कि यह लिखा पढ़ी महाराज के द्वारका की यात्रा कर अहमदाबाद से जोधपुर चले आने पर की गई थी ।
२. लेटर मुग़ल्स, भा. १, पृ० ३४५ ।
३. अजितोदय, सर्ग २६, श्लो० ३ और राजरूपक, पृ० २.६ ।
४. 'मुंतखिबुल्लुबाब' में फर्रुखसियर की अव्यवस्थितचित्तता के बारे में ये शब्द लिखे हैं-" इज़्मोराय बादशाह बरयक हाल करार न मे गिरिफ्त" ( देखो भा० २, पृ. ७६४) ।
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