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महाराजा अभयसिंहजी बाद महाराज अपनी इस वीर-वाहिनी को लेकर सिरोही की तरफ़ के कुछ जागीरदारों को दंड देते हुए पालनपुर जा पहुँचे । इस पर वहाँ के शासक ने सामने आकर इनकी अभ्यर्थना की । जैसे ही इसकी सूचना ( मुबारिजुलमुल्क ) सरबुलंद को मिली, वैसे ही उसने अहमदाबाद से आगे बढ़ मार्ग में ही इनके रोक लेने की तैयारी शुरू कीं । अपने गुप्तचरों के द्वारा यह हाल मालूम होने पर इन्हों ( महाराज ) ने २०,००० रुपये की हुंडी और नायबी की आज्ञा लिखकर सरदार मुहम्मदख़ाँ के पास भेज दी, और साथ ही उसे यह भी कहला दिया कि संभव हो, तो वह चुपचाप अहमदाबाद पर अधिकार कर ले । इस पर वह गुजरातियों की सेना इकट्ठी कर मौक़ा ढूँढने लगा । परन्तु सरबुलंद के पक्षवाले नगर के दरवाज़ों को ईंटों से बंदकर पूरी सतर्कता से नगर की रक्षा करने लगे थे । इससे वह सफल न हो सका ।
इसके बाद जिस समय महाराज सिद्धपुर के निकट पहुँचे, उस समय आस-पास के कई मुसलमान अमीर भी सरबुलंद का पक्ष छोड़ कर इनके झंडे के नीचे चले आएँ । इसी वर्ष के आश्विन ( सितंबर) में महाराज ने अपना डेरा साबरमती - तट पर के मोजिर गाँव में कर वहीं पर अपने मोरचे बनवाने शुरू किएँ । यहाँ से सरबुलंद
ख्यातों में लिखा है कि जिस समय महाराज सलावास में ठहरे हुए थे, उस समय भादराजन का ठाकुर नाराज़ होकर अपनी जागीर को लौट गया । यह देख महाराज के छोटे भ्राता बखतसिंहजी कुछ सैनिकों साथ एकाएक वहाँ जा पहुँचे। इससे उसे लौट आकर महाराज की सेना में सम्मिलित
होना पड़ा ।
१. रेवाड़े का ठाकुर बहुधा जालोर की तरफ़ चाकर उपद्रव किया करता था, इसी से उसे दंड दिया गया था ।
२. लेटर मुग़ल्स, भा० २, पृ० २०३ ।
३. लेटर मुग़ल्स, भा० २, पृ० २०५ और बाँबे गज़ेटियर, भा० १, खंड १, पृ. ३१०-३११ । ४. वि० सं० १७८७ की द्वितीय भादौं सुदी ३ के महाराज के पत्र से उस समय महाराज का सिद्धपुर में होना प्रकट होता है ।
५. लेटर मुगल्स, भा० २, पृ० २०५-२०६ |
६. महाराज के अपने वकील अमरसिंह के नाम के वि० सं० १७८७ की कार्त्तिक सुदी १२ के पत्र में उस समय की गुजरात की दशा का वर्णन इस प्रकार दिया है:
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मरहटे सिर्फ चौथ ही नहीं लेते प्रत्युत बड़ौदा, डभोही और जँबूसर आदि ३० लाख की आमदनी के प्रांतों पर भी उन्हीं का अधिकार है। इनमें सूरत आदि २८ प्रांत पीलू के अधिकार में हैं। उसका जी चाहता है, तो वहाँ की कुछ आमदनी शाही सूबेदार को दे देता है और नहीं चाहता
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