Book Title: Marwad Ka Itihas Part 01
Author(s): Vishweshwarnath Reu
Publisher: Archeaological Department Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 435
________________ महाराजा अभयसिंहजी सवारों की मार से घबराकर सरबुलंद को अपनी सेना को लौट चलने की आज्ञा देनी पड़ी। इसके बाद स्वयं महाराज ने अपने राठोड़-रिसाले के साथ आगे बढ़ शत्रु-सेना पर धावा किया । यद्यपि यवनों ने गाँव की आड़ लेकर तोपों और बन्दूकों की मार से इनके रोकने की जी-तोड़ चेष्टा की, तथापि समुद्र-तरंग की तरह आगे बढ़ती हुई राठोड़-सेना ने, सब विघ्न बाधाओं को दूरकर, शत्रुओं को मार भगाया, और उनके अधिकृत स्थान पर अपना झंडा खड़ा कर दिया । यह देख सरबुलंद भी अपनी सेना को उत्साहित करता हुआ पलट पड़ा, और बड़ी वीरता से महाराज की सेना का सामना करने लगा । अन्त में उसने एक बार राठोड़ों को पीछे ढकेलकर ही दम लिया । परंतु इस युद्ध में एक तो उसके बहुत-से बड़े-बड़े वीर सरदार काम आ गए, और दूसरे उसके बहुत-से सैनिक राठोड़ों के दूसरे आक्रमण की आशंका से चुपचाप मैदान छोड़ कर चल दिए, इससे उसका बल क्षीण हो गया । शत्रु की इस प्रकार की दुर्दशा से उत्साहित होकर राठोड़ों ने सरबुलंद पर दूसरा हमला कर दिया । परंतु ऐसे ही समय उसके दो सेनापति अमीनबेगखाँ और शेख अल्लाहयारखाँ नगर-रक्षिणी सेना को लेकर रण-स्थल में आ पहुँचे । इससे यद्यपि आक्रमण में राठोड़ों को सफलता न हो सकी, तथापि सरबुलंद की सेना के बहुत से सैनिकों के घायल हो जाने से उसका उत्साह शिथिल पड़ गया । इसके बाद जैसे ही सायंकाल होने पर युद्ध बंद हुआ, वैसे ही उसने अपना शिविर युद्ध-स्थल से उखड़वाकर अहमदाबाद के बाहर की तरफ़ किले के नीचे लगवा दिया। १. लेटर मुगल्स, भा॰ २, पृ० २०६-२०८ । २. लेटर मुगल्स. भा० २, पृ० २०८-२११ । 'राजरूपक' में लिखा है: सतरै समत सत्यासियो, आसू उज्जल पक्ख ; बिजै-दशम भागा विचित्र, अभै प्रतिज्ञा अक्ख । (देखो पृ० ३६३)। 'मीराते अहमदी' में लिखा है कि सायंकाल के समय सरबुलंद के पास केवल ४.• सवार ही रह गए थे । परन्तु महाराज द्वारा, शाही दरबार में स्थित, अपने वकील के नाम लिखे, वि० सं० १७८७ की कार्तिक बदी २ के, पत्र से प्रकट होता है कि आश्विन सुदी ५ को महाराज ने शहर से डेढ़ कोस पूर्व के हाँसोल-नामक गाँव के पास साबरमती के किनारे मोरचे लगाए थे। परन्तु सरबुलंद के शाही ३३६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516