________________
मारवाड़ का इतिहास
वि० सं० १७८७ के आषाढ़ ( ई० सन् १७३० के जून ) में गुजरात के सूबेदार सरबुलंदखों के कार्यों को देखकर बादशाह उससे नाराज हो गया । इससे उसने ( अजमेर के साथ ही ) गुजरात का सूबा महाराज अभयसिंहजी को दे दिया। इसी अवसर पर इन्हें खिलअत आदि के अलावा १८ लाख रुपये नकद और मय गोला-बारूद के ५० छोटी-बड़ी तोपें भी दी गई । इस पर यह अलवर होते हुए अजमेर पहुँचे और वहाँ पर अधिकार कर मेड़ते होते हुए जोधपुर चले आएँ । कुछ दिनों में जब २० हजार सवारों का रिसाला तैयार हो गया, तब यह यहाँ से चलकर जालोर पहुँचे । यहीं पर इनके छोटे भ्राता बखतसिंहजी आकर इनके साथ हो गए । इसके १. इतिहास से ज्ञात होता है कि सरबुलंद ने गुजरात में होनेवाले मरहटों के उपद्रव को दबाने
में असमर्थ होकर उन्हें वहाँ की आमदनी का चौथा भाग देने का वादा कर लिया था । साथ ही वह स्वयं भी बादशाह की परवाह न कर गुजरात में बड़ी लूट-मार करने लगा था।
इसी से बादशाह उससे नाराज़ हो गया । २. श्रीयुत सारडा का 'अजमेर', पृ० १६७ । ३. ग्रांट डफ की 'हिस्ट्री ऑफ़ मरहटाज़' में इस घटना का समय ई० सन् १७३१ लिखा है ।
( देखो भा० १, पृ० ३७६ ) । परन्तु 'मश्रा सिरुल उमरा' में दिए हि० सन् ११४० के हिसाब से ई० सन् १७२७ ( वि० सं० १७८४ ) आता है। उसमें इसी के अगले
साल इनका गुजरात जाना भी लिखा है ( देखो भा० ३, पृ० ७५६)। 'राजरूपक' में इस घटना का समय वि० सं० १७८६ लिखा है । उससे यह भी ज्ञात होता है कि इसी के बाद यह गुजरात की चढ़ाई का प्रबन्ध करने के लिये प्राषाढ़ में दिल्ली से जोधपुर को रवाना हो गए ( देखो पृ० २८३ और २८८) और यहाँ पर सारा प्रबन्ध कर लेने के बाद, वि. सं० १७८७ की चैत्र सुदी में, इन्होंने गुजरात की तरफ प्रयाण किया ( देखो पृ० ३८७ )।
४. महाराज के, शाही दरबार में रहनेवाले अपने वकील, भंडारी अमरसिंह के नाम लिखे, वि० सं० १७८७ की कार्तिक सुदी १२ के, पत्र में १५ लाख रुपये, ४० तोपें, २००
मन बारूद और १०० मन सीसे का दिया जाना लिखा है। ५. 'लेटर मुग़ल्स' में लिखा है कि महाराज ने दिल्ली से जोधपुर पहुँच मारवाड़ और नागोर
से २० हजार कुशल राठोड़-सवार एकत्रित किए थे । इसके बाद यह मय अपने छोटे भाई बखतसिंहजी के अहमदाबाद की तरफ रवाना हुए । इनके पालनपुर के पास पहुँचने पर वहाँ का फौजदार करीमदादखा भी इनके साथ हो लिया ( देखो भा॰ २,
पृ० २०५ )। ६. अभयोदय, सर्ग १०, श्लो० १-१६ । 'लेटरमुग़ल्स' नामक इतिहास से ज्ञात होता है कि
वि० सं० १७८७ के द्वितीय भादों ( ई० सन् १७३० के सितम्बर ) में महाराज का कैंप जालोर में था । ( देखो भा॰ २, पृ० २०३ ) और 'राजरूपक' से वि० सं० १७८७ के श्रावण में भी महाराज का निवास जालोर में होना प्रकट होता है ( देखो पृ० ३१०)
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com