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मारवाड़ का इतिहास
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'भयो' से ज्ञात होता उपाधि भी थी। उसके ब
अगस्त) में इन्होने और फिर यह
यात्रा कर दिख
इसक बाद वि० ० Por: (क) के साथ द गुजरात की तरफ गई।
केही समय बादशाह ने इन्हें 'राजराजेश्वर की १७८१ के भादों (ई० सन् १७२४ के ही की कन्या से विवाह किया.
वहां से लौटने पर जिल पत्र पहाराज दिल्ली में थे, उस समय इन्हें सूचना और रायसिंहजी, जैतावत, कूँपावत,
मिली कि (इनके छोटे भाई
!
सरदारनी
आप |
सन् १७२५) में यह सरबुलंदखाँ दागियों के उपद्रवों को दबाने के लिये
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२. स्थान दिया है
सलाह से ही महागत
सदों का विश्वास था कि राजा जयसिंहजी की माने गए थे । इसलिये उन्होंने इस विवाह को बालने के लिये सहजपुर चलने का आग्रह किया। परन्तु जब महाराज ने इस बात को जब बहुतन सरदार नाराज होकर अपने-अपने घरों को छोटे भ्राता आनन्दसिंहजी और रायसिंहजी के सतपाल थे, बल सं० १७८१ की भादौं मुदी १० के, दिल्ली से के नाम के पत्र से भी सरदारों के अपने-अपने वरों
नल दिए और बहुत से देवजा मिले लिपुत्र को बले जाने की होती है
कोप्रजितसिंहजी के मरवाने में सम्मिलित समझते
ही हाथ में होने से
थे ।
उत अभयसिंह का सारा कार- बार भंडारियों के वे या नगर र औरहराज की उनके कैद करने के लिये बार-बार दवाते
थे। अंत में लाचार
होर मात को उन्हें कैद करने वाम देना पड़ा। इस अवसर पर कई भंडारी मारे गए । मथुरा के मुकाम पर स्वय भंडारी रघुनाथ को भी क़ैद कर लिया और उसका केवन को सौंप परन्तु इसके बाद वि० सं० १९८२ के ज्येष्ठ में जब महाराज ने से निकाला, तब फिर मरदार नाराज़ होकर जालोर इस पर कल से, उनको प्रसन्न करने के लिये भंडारी रघुनाथ और खींवसी
करते समय काय स
और
दिया।
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६, ग्लो
2. ना० १. खंड !.
4 ६ वस्तु राजरूपक में इसका उल्लेख विसं. १७२४. जयपुर नरेश जयसिंहजी के महाराज ● लिखे पत्र में भी की होती है।
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